स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी

स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी

स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी........
वो कठोर दिल कहाँ से लाओगी.........
ज्ञान की तलाश क्या सिर्फ बुद्ध को थी?
क्या तुम नही पाना चाहती वो ज्ञान?
किन्तु जा पाओगी,अपने पति परमेश्वर
और नवजात शिशु को छोड़कर ,,,,,,,,,,,
तुम उनपर जान लुटाओगी,
उनकी होंठो के एक मुस्कुराहट के लिए
अपनी सारी खुशियो की बलि चढ़ाओगी।
स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी.........
वो कठोर दिल कहाँ से लाओगी.......
क्या राम बन पाओगी????
क्या कर पाओगी अपने पति का परित्याग,
उस गलती के लिए जो उसने किया ही नहीं????
ले पाओगी उसकी अग्निपरीक्षा
उसके नाज़ायज़ सबंधो के लिए भी????
क्षमा कर दोगी उसकी गलतियों के लिए,
हज़ार गम पीकर मुस्कुराओगी,
स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी..........
वो कठोर दिल कहाँ से लाओगी........
क्या कृष्ण बन पाओगी????
जुड़ पायेगा तुम्हारा नाम किसी परपुरुष के साथ,
जैसे कृष्ण संग राधा,,,,
अगर तुम्हारा नाम जुड़ा.......
तो तुम चरित्रहीन कहलाओगी.......
तुम मुस्कुराकर बात भी कर लोगी,
तो भी कलंकिनी कहलाओगी........
स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी........
वो कठोर दिल कहाँ से लाओगी.......
क्या युधिष्ठिर बन पाओगी????
जुए में पति को हार जाओगी?????
तुम उसके सम्मान की खातिर,
खुद को कुर्बान कर जाओगी......
मौत भी आये तो उसके आगे खड़ी हो जाओगी।
स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी.......
वो कठोर दिल कहाँ से लाओगी.......
तुम नाजुक हो,
तुम सरल हो,
तुम सहज हो,
तुम निश्चल हो,
तुम निर्मल हो,
तुम कोमल हो,
तुम जीवन हो,
तुम प्रेम ही प्रेम हो,
हाँ, इसलिए तो तुम स्त्री हो.......

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