सिक्खो को नमन.

सिक्खो को नमन.

सिक्खो को नमन. 

 

सिक्खों के शान में जितना बोलो कम है,

इनकी हर अदा में ज़िंदादिली का दम है,

जीवन जीने की असली कला तो इनहोने ही सबको सिखाई है,

कमसे कम एक दोस्त सिख जरूर हो, यह आशा हमको भायी है।

 

हँसते हँसते जीवन जीना इनको बहुत सुहाता है,

और पूरी निष्ठा से जीने का फॉर्मूला इनको आता है,

सारा विश्व अनंत दुखो से भरा हुआ नजर आता है,

लेकिन दुख किसे कहते है, सिक्खो को समझ नहीं आता है।

 

चारों ओर दुखी लोगो का जमघट नज़र आता है,

क्या कभी आपको एक भी सिख वाकई दुखी नज़र आता है।

मस्ती में जीते है, मस्ती में पीते है, मस्ती में ही मर जाते है,

इतने गुणो की खान वाले लोग, और कहा पाये जाते है।

 

छोटी सी आबादी में भी इनको आरक्षण नहीं चाहिये,

रिश्तों को ताउम्र निभाने का जज्बा इनसे सीख जाइये,

दुनिया के हर कोने में इनहोने अपना परचम फहराया है,

सेवा करने का असली मतलब इन्होने ही सबको समझाया है।

 

मंदिर, मस्जिद सब धर्म की आड़ में पैसे खूब कमाते है,

लेकिन दुनिया के सब गुरुद्वारों में हम मुफ्त लंगर खाने जाते है,

बात के पक्के, धर्म के सच्चे, जुनून भी इनमे भारी है,

हर क्षेत्र में अपना परचम फहराने की इन्होने मन मे ठानी है।

 

इनके गुरुओ ने ही तो देश के लिए अपने बेटो को दीवार मे चुनवाया है,

दुनिया के हर कोने में सेवा के लिए ही तो गुरुद्वारों को बनवाया है,

करोड़ पतियों की बेटी बहुओ ने भी लंगर मे रोटियों को बिलवाया है,

इनके बेटों ने भी मुस्कराते हुये सबके जूतों को गुरुद्वारों मे चमकाया है।

 

इनसा कोई ड्राईवर नहीं, इनसा कोई मैकेनिक नहीं, इनसा कोई किसान भी नहीं है,

इनसा कोई फौजी नहीं, इनसा कोई मौजी नहीं, इनसा कोई दोस्त भी नहीं है,

दुनिया भर के चुटकुलों ने भी इनको नहीं झुकाया है,

इनकी जिंदा दिली और सेवा भाव ने तो हम सबको बहुत रिझाया है।

 

इनके गानो और संगीत ने, सबको बहुत झूमाया है,

नाच नाच कर ठुमके लगाना इन्होने ही हमको सिखाया है।

खिलखिला के ठहाके लगाने का अंदाज इनका बहुत निराला है, 

अपार खुशियों के संग जश्न मनाने का सही तरीका इनको ही तो आता है।

 

बड़िया और पौष्टिक खाने और खिलाने के ये बहुत शौकीन है,

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