कुसल कुसल ही पुछते जग में रहा न कोय ।
जरा मुई ना भय मुआ कुसल कहां ते होय ।।
कबीरदास
अर्थ:- संसार में बुढ़ापा और भय कभी नहीे मरते। कबीरदास कहते हैं कि सब एक दूसरे से कुशलता पुछते रहते हैं फिर भी जग में कुशल कोई नहीे रहता। न तो बुढ़ापा आने से रुका और न मृत्यु का भय समात्प हुआ फिर कुशलता कहां से हो सकता है जब मनुष्य जरा व मरण के भय से लापरवाह हो जाता है तभी उसकी कुशलता संभव है।