आपे गुण आपे कथै, आपे सुणि बीचारु।

आपे गुण आपे कथै, आपे सुणि बीचारु।



आपे गुण आपे कथै, आपे सुणि बीचारु।

आपे रतनु परखि तूं, आपे मोलु अपारु।।

                                          नानक देव

वह अकाल पुरुष परमात्मा स्वयं ही गुण है और स्वयं ही उन गुणों का बखान करता है।  वह स्वयं ही सुविचार है,  स्वयं ही रत्न है और स्वयं ही रत्न को परखने वाला जौहरी है और स्वयं ही उस रत्न का मूल्य है। भाव यही है कि इस संसार में क्षुद्र जीव का कुछ भी नहीं है। जो कुछ भी है वह उस परमात्मा का ही है।