कागद को सो पूतरा, सहजहि में घुल जाय ।

कागद को सो पूतरा, सहजहि में घुल जाय ।



कागद को सो पूतरा, सहजहि में घुल जाय ।

रहिमन’ यह अचरज लखो, सोऊ खैंचत बाय ।।

                                                रहीम

अर्थ:-  मनुष्य कागज के पुतले की तरह है जिसे पानी की दो बूंद ही गला देती हैं। कवि रहीम कहते हैं कि यह आश्चर्य है कि उसी इंसान को सांसारिक वायु अपनी ओर आकृष्ट करती रहती है। मनुष्य के शरीर को चिंता रोग और मृत्यु क्षणभर में समात्प कर देती हैं फिर भी मनुष्य अहंकार को नहीं त्यागता।