श्री शारिका

श्री शारिका



माता छख अष्ट - दश बो’ज़ा  शाम सो’ दंरी । ।

शिव - शक्ति एक रुपॅपिनी पानुॅ भुवनीश्वरी ।।

वनाने च़े’ साऽरी श्रीयुक्त राजुॅ राऽज़ीश्वरी ।

माऽतृकायन मंज़ कायवॅुनुॅ  काऽमीश्वरी ।। 1 ।।

 

शाक्त यूगुॅच पानॅु शोलवॅुनुॅ युगीश्वरी ।

ओ ३ म शब्द प्रणवान प्रज़लवुॅनॅ   पूर्णेश्वरी ।।

ह्रीं बीजस सगवान बऽनिथ मूलादाऽरी ।

चोन चऽखॅुरु छु ब्यन्द त्रिकून वृत आकाऽरी ।। 2 ।।

 

हार परबतस बदि द्राव श्री चऽकरुक आकार ।

सगुण चऽखुॅरुॅ सगनोवथन बऽनिथ पानुॅ साकार ।।

जूत्य् ज़ाऽलिथ ज़ोतनोवथन सु च़्यथ न्यराकार ।

प्रकाश - विमर्श म्युल गव , वुछमख माऽज टाकार ।। 3 ।।

 

जाय चाऽन्य श्रीपीठ यति ग्रज़ान सहस्त्रॅआर ।

षट चऽकरु बीदन करनुक छुय चोन अधिकार ।।

शारिका सहस्त्रनामस मंज़ छु चोन मंत्र संचार।

माऽज व्यछ़नावतम आकार - गव- न्यराकार।। 4।।

 

शब्दमयी शक्ती हुन्ज़ छख पानुॅ सरस्वती।

महिषासुर-मर्दिनी बऽनिथ पानुॅ सरस्वती।

शिवदूती - काऽली - करालिनी छख मधुमर्ती ।

गायत्री - सावित्री - वेद माता चुॅ आधा शक्ती ।। 5।।

 

नवन च़ऽखरन मंज़ दीवी चुॅ शाम सो’ न्दरी ।

समवित् स्पन्द मार्गस ईकनाऽविथ पानुॅ ऐन्द्री ।।

प्राणस अपानस , व्यानास समानस मंज़ महोदरी ।

त्रन भवनन तारावुॅनॅु त्रिपुरा त्रिपोर सो’ न्दरी ।। 6।।

 

स्यद्ध - पीठस प्यठ वास चोन बऽनिथ सर्वीश्वरी ।

बिन्दु - त्रिकोण - वसुकोण ह्यथ चुॅ पानॅु ध्याऽनीश्वरी ।।

दशार - युग्मस मंज़ वुछमख राजुॅ राऽज़ीश्वरी ।

शेरि हय लागय स्येंद्रि टयोक , माऽज़ीश्वरी ।। 7।।

 

खसवुॅनिस वसवुॅनिस त्रिकूनस मंज़ छु चोन निवास ।

ब्रह्मा - विष्णु - महेश्वर करान अऽथि अन्दर वास ।।

पानॅु शिवशक्ती हुन्द च्रऽक्रस मंज़ आभास ।

च़े’ न्येबर नुॅ केंह , चे’ प्यठ छुम व्येशवास ।। 8।।

 

हुम - फट शब्द बऽनिथ ताण्डव करनोवथन महीश्वर ।

क - ए - ई - ल - ह्रीं सान ग्रज़नोवथन सु ज़गथ ईश्वर ।।

ह - स - क - ह - ल - ह्रीं शब्दस मंज़ छु चऽक्रीश्वर । 

स - क - ल - ह्रीं नादस मंज़ बऽनिथ अर्धनाऽरीश्वर ।। 9।।

 

टाकार वुछिम शारिका लागान तऽति दरबार ।

यति हुर्य आऽठम दोह प्रखटन  ‘श्री’ आकार ।।

आं - शां - फ्रां शारिका छख माऽज पानॅु साकार ।

पादन चान्यन परन प्यमय, पूज म्याऽन्य कर स्वीकार ।। 10।।

 

शेरि हय लागय लोलुॅ पोशन हुन्द दस्तार ।

‘अहम्’  शब्द क्या छु, छुम नॅु काँह अहंकार ।।

शून्य अवस्थायि चानि वनान ब्रह्मद्वार ।

यति नच़ान शारिका बऽनिथ शिलातन साकार ।। 11।।

 

शारिका छख नव च़ऽक्रन हुॅन्ज़ नवद्वार ।

मूल प्रकृति पानॅु बनेमुॅच़ छि त्रिवलयाकार ।।

शब्द शक्ति अग्यानस करान छख सम्हार ।

‘जया’ छि श्री शारिकायि सोज़ान पोशुॅ अम्बार ।। 12।।

 

साभार: जया सिबू 'रैना'  एवम्  श्री चक्रेश्वर स्तुति( Shri Chakreshvara Stutih) by Dr Chaman Lal Raina