बैठ अकेला दो घड़ी, कभी तो ईश्वर ध्याया कर।
मन मन्दिर में गाफिल तू, झाड़ रोज लगाया कर ।।
सोने में तो रैन गँवाई, दिन भर करता पाप रहा।
इसी तरह बरबाद तू, प्राणी करता अपने आप रहा।
बिस्तर से उठ प्रेमियाँ, सतसंग में नित आया कर ॥१॥
मन मन्दिर में गाफिल तू, झाड़ रोज लगाया कर ।।
बारम्बार जन्म का पाना बच्चों वाला खेल नहीं ।
पूर्व जन्म के सत्कर्मो का जब तक होता मेल नहीं ।।
मुक्ति पद पाने के लिए तू उत्तम कर्म कमाया कर।। 2।।
मन मन्दिर में गाफिल तू, झाड़ रोज लगाया कर ।।
पास तेरे हो दुखिया कोई तूने मौज उड़ाई क्या।
भूखा प्यासा पड़ा पड़ोसी तूने रोटी खाई क्याा।
पहले सबसे पूछ कर पीछे रोटी खाया कर ।। 3।।
मन मन्दिर में गाफिल तू, झाड़ रोज लगाया कर ।।
साभारः श्री रामदेवी जी एवम् भजन संग्रह