भोग में रोग में यूं ही मर जाएगा।

भोग में रोग में यूं ही मर जाएगा।



भोग में रोग में यूं ही मर जाएगा।

तू अथाह शान्ति कल्याण कब पायेगा?

अन्त काल हाथ तेरे न कुछ आयेगा ।।१।।

भोग में रोग में यूं ही मर जाएगा।

तू अनेकों भरे भोग सदा भोगना।

तृप्ती कभी होवे नहीं दुख से सोवना।।

काल पीछे ही सदा पीछे लगा ही जायेगा।। २ ।।।

भोग में रोग में यूं ही मर जाएगा।

सुख शान्ति मिले तुमको दुखों का अन्त हो ।

पूर्णानन्द ऐश्वर्य और आनन्द हो ।

कैसे अभिलाषा पूरी ये कर पायेगा ॥ ३ ॥

भोग में रोग में यूं ही मर जाएगा।

मानजा मानजा मन को समझा अभी।

होगी फुरसत नहीं जिन्दगी में कभी ।

ऐसा अचक मौका न फिर आयेगा ॥४॥

भोग में रोग में यूं ही मर जाएगा।

अपनी शक्ति से इस बात को समझा अभी।

सर्व दुख नाश हो जावेंगे जानले।

सच्चा आनन्द हृदय में छा जायेगा ॥५।।

भोग में रोग में यूं ही मर जाएगा।

पूरा विश्वास कर तजो कामनाएँ सभी ।

शुद्ध जीवन का रास्ता मिलेगा तभी ।

जबकि सतसंग का रंग लग जायेगा ।। ६ ।।

भोग में रोग में यूं ही मर जाएगा।

 

साभारः श्री रामदेवी जी  एवम् भजन संग्रह