दुख भी मानव की सम्पति है, तू दुख से क्यों घबड़ाता है।
दुख आया है तौ जावेगा, सुख आया है तो जावेगा ।।
दुख जावेगा तो सूख देकर, सुख जावेगा तो दुख देकर।।
सूख देकर जाने वाले से, हे मानव क्यों भय खाता है ।।
सूख में है व्यसन प्रमाद भरे, दुख में पुरुषार्थ चमकता है।।
दुख की ज्वाला में पड़कर ही, कुन्दन सा तेज दमकता है।
सुख में सब भूले रहते हैं, दुख सबको याद दिलाता है।
सुख सन्ध्या का वह लाल क्षितिज, जिसके पश्चात् अँधेरा है ।।
दुख प्रातः का झुटपुटा समय, जिसके पश्चात् सवेरा है।
दुख का अभ्यासी मानब ही, सुख पर अधिकार जमाता है।
दुखके सम्मुख जो सिहर उठे, उनको इतिहास न जान सका।
जो दुख में कर्मठ धीर रहे. उनको ही जग पहचान सका।
दुख एक कसौटी है जिस पर, यह मानव परखा जाता है ।
साभारः श्री रामदेवी जी एवम् भजन संग्रह