धन्य धन्य गुरु दीवा, धन्य पूर्ण ब्रह्मह दीनानाथ ।
वन्दयो पादन चेय जुव, सानि गुरू ।।
भक्ति-वत्सलय दयालह, शांन्ति स्वरुपय ।
शायि चानि सारिज मन न्यूव, सानि गुरू ।
रसह पूर्णह विज्ञानह-रवह ही सच्चित आनन्दह ।
भगवन काँह दोयुम छुय न चेय राव, सानि गुरू ।।
छारान धोरान मनीश्वर ध्यान छिय चोनुय ।
ब्रह्मादि वेशिन त शिव, सानि गुरू ।।
आरहकरत्यन हन्द च्यत करनय प्रसन्न, छय चान्य काम।
दीनहबन्दो दयायि प्यठ यू, सानि गुरू ।।
स्यद्धी नव निधी रिधी न मंगय, मुक्ती चेय कीवल ।
अटल भक्ती दान द्यु व वञ, सानि गुरू ॥
शब्दह जहाज़स प्यठ खारिथ तारिथ च्यह भवसरय।
च्यह रोस्त स्यठा बोंठ म्य रिव, सानि गुरू ॥
दफतह गोवेन्दह बनिन च्यह ग्यानी जान ।।
जनमह जनमह म्यानि पाद वह सीव सानि गुरू ।।
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यदि तुममें कोई अच्छाई हो तो यह समजो कि दूसरों में तुमसे कहीं अधिक है।