गुरु शब्दय स्यीत हुशियार

गुरु शब्दय स्यीत हुशियार



Swami Govind ji

गुरू शब्दह स्यीत हुशियार, गव यि म्योन्य आत्मा ।

लय विक्षप्त नय रूज़ क्वशा, रूद रसा साद नय ।।

शब्दह प्रकाशी प्रकट गव गाशिसई स्यीत म्यूल गाश ।

गाशि स्यीत अन्ताहकरण नोव, रुद्य पोज अपराध नय ॥

संकलप विकल्प नय रुद, मन त प्राणई लय सपूद ।

मन बे मन गव च्यथ अच्यथई, ब्यन्द नय ख्द नाद नय ।।

यि अवस्था छय अलोक्यक, युस न वननस मंज़ इवान ।

जाग्रत, स्वपन स्वशफती, नय, तुरी व्यथान सभाध नय ॥

जानि सुय मानि सुय, यस अकिस पानस बन्योव ।

सू सन्योवूय सू बन्योवुय, तमि तोर वाद वाद नय।

परिपूर्ण परमह आनन्द गोवेन्दई ओत तोर ।

सुय स्वप्रकाश शुद्ध चीतन, रूज़ पथ प्रमाध नय ॥