श्यामह सुन्दरह सूबह शामह

श्यामह सुन्दरह सूबह शामह



Swami Govind ji

भावहनायि लोलह स्वरतह चई, शाह अख म खाली करतह चई ,

तरतह चई ब्रह्मान्डह बामह, रामह रामह रामह ग्यव।।

ईकान्तसई अन्दर न बेह, प्राणव स्यीत ग्यवुन सु ह्यह।

अमृत च्यज़ि दामह दामह, रामह रामह रामह ग्यव।।

सारेय उपाज़ त्राविथई, सहज भाव प्राविथई।

मशिराविथई लकह पामह, रामह रामह रामह ग्यव ।।

गंज़राव मो अखत ज़ई, त्राविथ रोज़ पनत्र च य ।

वुछ सुय छु मंज़ खासो आमह, रामह रामह रामह ग्यव ।।

गुरू सुन्द त्रेय छुय प्रसाद बोज़, अनुभव खुलिय सत नाद बोज़ ।

सारह बोज़ तमन्ना द्रामह, रामह रामह रामह ग्यव।।

साक्षात्कार करिथ रोज़, गुरू-शब्दई कीवल च बोज़ ।

आश्चर बोज़ सत सत धामह, रामह रामह रामह ग्यव ।।

चटिथ सार्य सम्बंधई, प्राविथ परमह आनन्दई ।

रोज गोवन्दह व प्रथ मुकामह, रामह रामह रामह ग्यव ।।

अनुभव सम्पण गोवेन्दह बन, साधन सम्पण संत च बन ।

संतन स्यीत शहरह त गामह, रामह रामह रामह ग्यव ।।

                                     ***

जल में नाव रहे तो कोई हानि नहीं पर नाब में जल नहीं रहना चाहिये ।साधक संसार में रहे तो कोई हानि नहीं परन्तु साधक के भीतर संसार नहीं होना चाहिये।