सतचित आनन्द निर्मल , सुय कीवल शिवोहम ।।
विज्ञानह रवह सदाशिवह, रस पूर्णन्ह निर्द्वन्दह सानि जुवह ।
लोलह नारह दद्य गयि चाज कल, सूय कीवल शिवोहम ।।
निर्विकार अनन्त अपार, नावह रूपहकुय सु आदार ।
अस्ति-भाति प्रयि रूपह थल थल, सुय कीवल शिवोहम ।।
जय अभिनाशि स्वप्रकाशि, मंज़ आनन्दह चिदाकाशि।
चानि स्योत सार्यसई मंगल, सुय कीवल शिवोहम ।।
ज्ञञानह नेत्र गयो खुलय , शिव सोरुय इय फुलय।
ज्यनह मरनचि चज्य गांगल, सुय कीवल शिवोहम ।।
आवाँगह मनसह अगोचर , ज़ानिथ सु शिव तस पूज़ कर ।
पूजि लाग दिह अमिमानह ब्यल, सुय कीवल शिवोहम ।।
पान पननुय याद पोवुम, क्या त्रोवुम क्या प्रोवुम ।
च्योन ह्योत समह दृष्टि ज़ल, सुय कीवल शिवोहम ।
परिपूर्ण सु आकाशि-वत, अभोक्ता करिथ ख्यथ च्यथ ।
युथ पाँनिस मंज़ई ख्यल , सुय कीवल शिवोहम ।।
सोरुय जान पननुय पान, पानस ब्यन केंह मो जान ।
पज़ कथ मान म जुवह डल, सुय कोबल शिवोहम ।।
अखंड असंग परिपूर्ण, परमह आकाश निरजाजन ।
गटह छेतह करि च्यतह वुज़मल, सुय कीवल शिवोहम ।।
गोवेन्दन गोवेन्दई, ज़ोनुन अन्दह वन्दई ।
त्राविन दुय त जाहिल, सुय कीवल शिवोहम ।।