सतचित आनन्द निर्मल

सतचित आनन्द निर्मल



Swami Govind ji

सतचित आनन्द निर्मल , सुय कीवल शिवोहम ।।

विज्ञानह रवह सदाशिवह, रस पूर्णन्ह निर्द्वन्दह सानि जुवह ।

लोलह नारह दद्य गयि चाज कल, सूय कीवल शिवोहम ।।

निर्विकार अनन्त अपार, नावह रूपहकुय सु आदार ।

अस्ति-भाति प्रयि रूपह थल थल, सुय कीवल शिवोहम ।।

जय अभिनाशि स्वप्रकाशि, मंज़ आनन्दह चिदाकाशि।

चानि स्योत सार्यसई मंगल, सुय कीवल शिवोहम ।।

ज्ञञानह नेत्र गयो खुलय , शिव सोरुय इय फुलय।

ज्यनह मरनचि चज्य गांगल, सुय कीवल शिवोहम ।।

आवाँगह मनसह अगोचर , ज़ानिथ सु शिव तस पूज़ कर ।

पूजि लाग दिह अमिमानह ब्यल, सुय कीवल शिवोहम ।।

पान पननुय याद पोवुम, क्या त्रोवुम क्या प्रोवुम ।

च्योन ह्योत समह दृष्टि ज़ल, सुय कीवल शिवोहम ।

परिपूर्ण सु आकाशि-वत, अभोक्ता करिथ ख्यथ च्यथ ।

युथ पाँनिस मंज़ई ख्यल , सुय कीवल शिवोहम ।।

सोरुय जान पननुय पान, पानस ब्यन केंह मो जान ।

पज़ कथ मान म जुवह डल, सुय कोबल शिवोहम ।।

अखंड असंग परिपूर्ण, परमह आकाश निरजाजन ।

गटह छेतह करि च्यतह वुज़मल, सुय कीवल शिवोहम ।।

गोवेन्दन गोवेन्दई, ज़ोनुन अन्दह वन्दई ।

त्राविन दुय त जाहिल, सुय कीवल शिवोहम ।।