दर्शणह चाने शर नेरि ईश्वरह

दर्शणह चाने शर नेरि ईश्वरह



Swami Govind ji

दर्शणह चाने शर नेरि ईश्वरह, शंकरह लगयो पादनई ।

लोलह पोशव च्यह पूजा ब करह, शंकरह लगयो पादनई ॥

जरह अख इयतनय सोनुय ज़रह ज़रह, अज़रह लगयो पादनई।

आसतम खोश भासतम ज़रह ज़रह, शंकरह लगयो पादनई ।।

कासतम यमह भयि ही दयि मरह मरह, अमरह लगयो पादनई ।

चोनूय नावई न्यत बो सुमरह, शंक रह लगयो पादनई ।।

रात दोह च्यह स्योत दिगम्बर वो बरह, अमरह लगयो पादनईं।

च्यह त्राविथ क्याजि फेरह ब बरह बरह, सँकरह लगयो पादनई ।।

आश छम चानी गाश, अन गाशरह, आशचरह लगयो पादनई।

नाश कर पापन ही कणाकरह , शंकरह लगयो पादनई।।

सतवा सागरन हंद्य आगरह, सागरह लगयो पादनई।

ही गुरुह मतह फिरनावतम घरह घरह, शंकरह लगयो पादनई।।

फोलियम हृदय चलियम थरह थरह हरह हरह लगयो पादनई।

पनने अथह स्यीत करतह म्यति खरह खरह, शंकरह लगयो पादनई।।

ही सदाशिवह तार दिम येमि भवसरह, सतगुरुह लगयो पादनई।।

शरणे च य आस चानी छेह आसरह, शंकरह लगयो पादनई ।।

अमृत चावतम ही अमरी-श्वरह, सुन्दरह लगयो पादनई।

भय कति रोज़ान चानि अभय वरह, शंकरह लगयो पादनई ।।

गोवेन्दने जुवह विज्ञञानह भासकरह, सतगुरुह लगयो पादनई ।

दुय कास भासतम चई चराचरह, शंकरह लगयो पादनई ॥

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बच्चा जब बाप का पल्ला पकड़े लेता है तब बाप वहीं खड़ा रह जाता है इसलिये नहीं कि वह इतना दुर्बल है कि इस कारण से कि वह स्नेह में फंसकर वहीं गड़ जाता है। प्रीति की यही निराली रोति है।