मेरे मालिक की दुकान पर, सभी का है खाता।
जितना जिसके भाग्य में होता, उतना ही वह पाता।।
क्या साधु क्या संत गृहस्थी, क्या राजा क्या रानी।
प्रभु की पुस्तक में लिखी है, सबकी कर्म कहानी।।
वह भी सबके जमा खर्च का, सही हिसाब लगाता।
बड़े-बड़े कानून प्रभु के, बड़ी-बड़ी मर्यादा।
किसी को कौड़ी कम नहीं देता बौर न दमड़ी ज्यादा।।
इसीलिए तो वह दुनिया का, जगत सेठ कहलाता।
जितना जिसके भाग्य में होता, उतना ही वह पाता।।
नहीं चले उसके घर रिश्वत, नहीं चले चालाकी।
उसकी अपनी लेन-देन की, रीति बड़ी है बांकी।।
पुण्य का बेड़ा पार करे वह, पाप की नाव डुबाता।
जितना जिसके भाग्य में होता, उतना ही वह पाता।।
करता है इन्साफ सभी का, सिंहासन पर डट के।
उसका फैसला कभी न पलटे, लाख चाहे सिर पटके।।
समझदार तो चुप रहता है, मूरख शोर मचाता।
जितना जिसके भाग्य में होता, उतना ही वह पाता।।
उजली करनी करो रे भइया, कर्म न करना काला।
लाख आँख से देख रहा है, तुम्हें देखने वाला।।
अच्छी खेती करो भक्तजन, समय गुजरता जाता।
जितना जिसके भाग्य में होता, उतना ही वह पाता।।