दीनानाथ कृष्ण गिरधारी, मेरी टेर सुनो चित लाय।
तुमहि एक हमारे प्यारे,
तूमकी सब कछु नन्द दुलारे,
तुमही जीवन तुम रखवारे,
मेरी अँखियन के हो तारे मारग दो दरसाय।
दीनानाथ कृष्ण गिरधारी, मेरी तेर सुनो चित लाय।
आस तिहारी हमकंू पल-पल
जैसे मछरी औ जमुना जल,
बिना मिले तरफै वह कल-कल,
हे घनश्याम सुजान सांवरे दो प्रेम बूँद बरसाय।
दीनानाथ कृष्ण गिरधारी, मेरी तेर सुनो चित लाय।
कहूँ कहा तूम जानन हारे,
घट-घट के हो परखन हारे,
हम भिक्षुक तुम राज दुलारे,
तनक दया की तनक कोर पै तुम्हारौ कछु न जाय।
दीनानाथ कृष्ण गिरधारी, मेरी तेर सुनो चित लाय।
टेरत टेरत हम तो हारे,
खोजत खोजत थक गए भारे,
ढूँढ़त ढूँढ़त नैना मारे,
तन मन औ जीवन लै हारे परे द्वार पै आय।
दीनानाथ कृष्ण गिरधारी, मेरी तेर सुनो चित लाय।