है आँख वो जो श्याम का दर्शन किया करे,
है शीश जो प्रभु चरण में वन्दन किया करे।
बेकार वो मुख है जो रहे व्यर्थ बातो में,
मुख वो है जो हरिनाम का सुमिरन किया करे।
हीरे मोती से नहीं शोभा है हाथ की,
है हाथ जो भगवान का पूजन किया करे।
मर कर भी अमर नाम है उस जीव का जग में,
प्रभु प्रेम में बलिदान जो जीवन किया करे।
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन,
वो तो गली गली हरि गुन गाने लगी।
महलों में पली, बन के जोगन चली,
मीरा रानी दिवानी कहाने लगी।
कोई राके नहीं कोई टोके नहीं,
मीरा गोविन्द गोपाल गाने लगी।
बैठी सन्तो के संग, रंगी मोहन के रंग,
मीरा प्रेमी प्रीतम को मनाने लगी।
राणा ने विष दिया, मानो अमृत पिया,
मीरा सागर में सरिता समाने लगी।
दुःख लाखों सहे, मुख से गोविन्द कहे,
मीरा गोविन्द गोपाल गाने लगी।