हा मनषि ! कयाज़ि छुख वुठान स्यकि-लवर,
अमि रटि हा-मालि पकिय न नाव।
ल्यूखुय यि नारॉन्य कर्मनि ॠखि,
ति मालि हाकिय न फिरिथ कॉह।।
हे मानव, रेत की रसिसयाॅ क्यो बटता है। इस तरह हे भारवाहक,तेरी नाव आगे नहीं जा सकती या इस रेखा से , भलेमानस, तेरी नैया अग्रसर नही हो सकती। तेरी कर्म-रेखा पर जो कुछ नारायण लिख गये ,वह कोई बदल नही सकता
Contributed By: अशोक कौल वैशाली