सहज़स शम तॅ दम नो गछ़े,
यछ़ि नो प्रावख मुक्ति-द्वार।
सलिलस लवण ज़न मीलिथ गछ़े,
तोति छुय दुर्लभ सहज़ व्यच़ार।।
अर्थात्
सहज़ (आत्म साक्षात्कार) के लिए शम एवं दम की आवश्यकता नहीं। मात्र चाहने से तू मुक्ति-द्वार पा नहीं सकता। (यदि) सलिल (जल) में लवण सदृश मेल भी हो,तो भी सहज-विचार दुर्लभ है।
You need not strive hard (restrain self and retain breath) for that perpetual (unobstructed)sound; nor can …
Contributed By: अशोक कौल वैशाली