मूढ़ो त्रय छ्य न धारून तॅ पारून  Lalla Vakh लल वाख - 45

मूढ़ो त्रय छ्य न धारून तॅ पारून  Lalla Vakh लल वाख - 45



मूढ़ो त्रय छ्य न धारून तॅ पारून,

मूढ़ो क्रय छ्य न रछिन्य् काय।

मूढ़ो क्रय छ्य  न दही संदारून,

सहज़ व्यच़ारून छुय  व्वपदीश।।

अर्थात् 

हे मूढ़ ! कर्त्तव्यकर्म व्रत -धारण ओर साज-सज्जा नहीं। न ही मात्र काया की रक्षा कर्तवय कर्म है ।भोले मानव ! देह की सार-संभाल ही कर्त्तव्य कर्म नही ।सहज़-विचार ( आत्मतत्व-चिन्तन) वास्तविक उपदेश है।

Contributed By: अशोक कौल वैशाली