मन पुश तॅय यछ़ पुशाॅञी,
भावॅकि कुसुम लाॅगिज़्यस पूज़े।
शाशि-रस गोड़ दिज़्यस ज़ालदाॅनी,
छ़वपि मंत्र शंकर स्वात्मॅ वुज़े॥
अर्थात्
मन माली है और जिज्ञासा मालिन। भाव-कुसुमों से उसकी पूजा करना। शिशिरस ( अमृत जल ) से उसका अभिषेक करना। मौन होकर मंत्र जाप करने से स्वात्म-शंकर उद्बुद्ध होगा।
Contributed By: अशोक कौल वैशाली