प्रथॅइ तीर्थन गछ़ान संन्यास,   Lalla Vakh लल वाख  - 26

प्रथॅइ तीर्थन गछ़ान संन्यास,   Lalla Vakh लल वाख  - 26



प्रथॅइ तीर्थन गछ़ान संन्यास,

ग्वारान स्वदरर्शनॅ  म्यूल।

च्यता पॅरिथ मो निष्पथ आस,

डेंशख दूरे द्रमुन न्यूल ॥

सन्यासी प्रत्येक तीर्थ को जाता है ताकि कहीं स्वात्म-दर्शन का लाभ हो।

हे चित्त, पढ़-लिखकर भी निष्पथ ( मार्गहीन) न हो। दूर से देखने पर दूब हरी दिखाती है। अर्थात् दूर के ढोल सुहावने होते हैं।

Contributed By: अशोक कौल वैशाली