नाबद्य् बारस अट:गण्ड ड्-योल गोम,
देह-काण होल गोम ह्राकॅ कॅह्रो।
ग्वरॅ -सुन्द वनुन रावन-त्योल प्योमं,
पाहलि-रूस्त ख्योल गोम ह्राकॅ कॅह्रो।।
अर्थात्
(मेरे कधे पर के ) पताशों की गठड़ी ( सांसारिक सुख-संपदाओं) की रस्सी की गंठ ढीली पड़ गई। देह कमान के सदृश झुक गई। (अर्थमद) दिन का कामकाज भी सारा बिगड़ गया। यह भार वहना करू तो कैसे ?
गुरु शिक्षा की ऐसी कड़ी चोट लगी कि जो कुछ (प्रिय) था, सब खो गया। रेवड़ गड़रिये के बगैर रह गया। कैसे इस बोझ को वहन करू ?
Contributed By: अशोक कौल वैशाली