नाबद्य् बारस अट:गण्ड ड्-योल गोम    Lalla Vakh लल वाख -48

नाबद्य् बारस अट:गण्ड ड्-योल गोम    Lalla Vakh लल वाख -48



नाबद्य् बारस अट:गण्ड ड्-योल गोम,

देह-काण होल गोम ह्राकॅ  कॅह्रो।

ग्वरॅ -सुन्द वनुन रावन-त्योल प्योमं,

पाहलि-रूस्त ख्योल गोम ह्राकॅ  कॅह्रो।।

अर्थात्   

(मेरे कधे पर के ) पताशों की गठड़ी ( सांसारिक सुख-संपदाओं) की रस्सी की गंठ ढीली पड़ गई। देह कमान के सदृश झुक गई। (अर्थमद) दिन का कामकाज भी सारा बिगड़ गया। यह भार वहना करू तो कैसे ?

गुरु शिक्षा की ऐसी कड़ी चोट लगी कि जो कुछ (प्रिय) था, सब खो गया। रेवड़ गड़रिये के बगैर रह गया। कैसे इस बोझ को  वहन करू ?

Contributed By: अशोक कौल वैशाली