नाथ !ना पान ना परज़ोनुम्   Lalla Vakh लल वाख  -

नाथ !ना पान ना परज़ोनुम्   Lalla Vakh लल वाख  -



नाथ !ना पान ना परज़ोनुम् ,

सदॉइ बूदुम यि क्व दिह्। *

चॅ बो  बो च़  म्युल नो ज़ोनुम,*

च़ कुस  ब्व क्वस्स छु संदिह् ।।

हे स्वामी,न मैंने अपने आप को पहचाना न पराये को। सदा इस शरीर को दु:ख देती रहीं। 'तू मैं है',  ' मैं तू हूं - यह मेल का रहस्य में समझ न पाई । इसी संदेह में रही कि तुम कौन हो  ओर में कौन हूं।

Contributed By: अशोक कौल वैशाली