दिहचि लरि दारि-बर त्रोपरिम् ,
प्रानॅ-चूर रोटुम त धु तमस दम।
ह्रदयिचि कूठरि अन्दर गोण्डुम,
ओमकि चोबॅकॅ तुलमस बम्।।
अर्थात्
देह-रूपी मकान के द्वार-झरोखे मैने बन्द कर दिये और प्राणरूपी चोर को पकड़कर उसके भागने की राहें रोक ली। फिर हृदय की कुटिया में उसको बांध कर रखा और ओ३म् के चाबुक से उसको खुब पीटा (जिससे सहज नाद गूंज उठा)।
Contributed By: अशोक कौल वैशाली