ज़ानॅहा नाड़ि दल रॅटिथ ,
च़टिथ वॅटिथ कुटिथ क्लीश।
ज़ानॅहा अदॅ अस्त: रसायन गटिथ,
शिव छुय कूठ तॅ च़ेन व्वपदीश।।
•••••••• अर्थात् ••••••
यदि मैं मन से नाड़ि-दल को नियंत्रित करना जानती-यह जानती कि उन्हे कैसे काटूं और समेटूं तो मुझे भी क्लेशों
के निवारण की विधि आ जाती। और तब कहीं मुझको रसायन घोटने (आत्म ज्ञान) का अनुभव होता। शिव का पाना कठिन है, यह उपदेश ध्यानपूर्वक सुनले।
Contributed By: अशोक कौल वैशाली