च्यतॅ तुरूग व्रगि हाथ रोटुम,
च्यलिथ मिलविथ दशि-नाड़ि वाव।
तवै शशिकंल व्यगलिथ वॅछ़मॅ,
शुन्यस शुन्या मीलिथ गव।
अर्थात्
चित्त-रूपी घोड़े को लगाम देकर थाम लिया। यत्न पूर्वक ( प्राणाभयास) द्धारा दशनाडियों के शवासोछ्वास को बांध लिया। तब कहीं शशिकला पिघली और ( मेरे पार्थिव)शरीर में उत्तर आई,और शून्य में विलीन हो गया।l
Contributed By: अशोक कौल वैशाली