च्यतॅ तुरूग व्रगि हाथ रोटुम    Lalla Vakh लल वाख  - 53

च्यतॅ तुरूग व्रगि हाथ रोटुम    Lalla Vakh लल वाख  - 53



च्यतॅ तुरूग व्रगि हाथ रोटुम    Lalla Vakh लल वाख  - 53

च्यतॅ तुरूग व्रगि हाथ रोटुम,

च्यलिथ मिलविथ दशि-नाड़ि वाव।

तवै शशिकंल व्यगलिथ वॅछ़मॅ,

शुन्यस शुन्या मीलिथ गव।

अर्थात्

चित्त-रूपी घोड़े को लगाम देकर थाम लिया। यत्न पूर्वक ( प्राणाभयास) द्धारा दशनाडियों के  शवासोछ्वास को बांध लिया। तब कहीं शशिकला पिघली और ( मेरे पार्थिव)शरीर में उत्तर आई,और शून्य में विलीन हो गया।l

Contributed By: अशोक कौल वैशाली