च्यतॅ तुरूग गगनॅ भ्रमॅ-वोन,
निमिषॅ अकि यूज़न लछ।
च्यतनि वगि ब्वद्धि रॅटिथ ज़ोन,
प्रान-अपान संदारिथ पखॅच्य्।
अर्थात्
चित्त-रूपी अश्व गगन-चारी है। एक निमिष में लाखों योजन घूम आता है। जिसने बुद्धि ओर विवेक रूपी लगाम से इसको थामना सीख लिया वही प्राण-अपान के चकदृय को नियंत्रित करने में सफल होता है। (पाठभेद) जिसने लगाम से विचारों के घोड़े को थामा नहीं उसके प्राणापान रूपी चकदृय टूट-फूट कर नष्ट हो गये।
Contributed By: अशोक कौल वैशाली