कन्द्यो ! करख कन्दि कन्दे,
कन्द्यो ! करख कन्दि विलास !
भूगय मीठि दितिथ् यथ कन्दे,
अथ कन्दि रोज़ि सूर न त सास।।
स्वमन गारून मंज़ यथ कन्दे,
यथ कन्दि दपान स्वरूप नाव।
लूभ मूह च़लिय शूब यियी कन्दे,
यॅथ्य् कन्दि तीज़ तय सोर प्रकाश।।
अर्थात्
हे शरीरधारी मानव। यदि तू सदैव तन बदन की ही चिन्ता-चर्चा करता रहेगा ओर तन की ही साज सज्जा में रत रहेगा और भोर्गशवर्य से यदि तू इस तन को चूमता रहेगा,तो ऐसा समय आयेगा, जब इसकी राख तक शेष न रहेगी। (तुम्हे चाहिए कि) इस तन में सच्चे मन से उसकी खोज कर जिसके कारण इ…
Contributed By: अशोक कौल वैशाली