आयस वते गयस वते,
सुमन स स्वथि मंज़ लूस्तुम दूह।
चन्दस वुछुम तॅ हार न अथे।
नावतारस दिमॅ क्या बूव
अर्थात्
(मैं ) सीधी राह (जनपथ) से आई , पर सीधी राह से लौट न पाई ।अभी सेतु के बीच ही जा रही थी कि इतने में दिन ढल गया। जब ज़ेब में हाथ डाल कर देखा तो उसमें एक कोडी भी न थी ।जब ज़ेब में हाथ डाल कर देखा तो उसमें एक कोडी भी न थी। अब बताओ, पार-तरावा में तो क्या दू।
सीधी राह से आई, पर लोट न सकी उसी राह से। मन-रूपी बांध ( सेतु ) से जा रही थी कि दिन ढल गया। भीतर झांका तो हर ( शिव ) का नाम न पाया। कहिये,तब पार तरावा क्या दू ?।
Contributed By: अशोक कौल वैशाली