आप तॅ थ्वकॅ प्यठ् शोरि हाचुॅम्   Lalla Vakh लल वाक् -68

आप तॅ थ्वकॅ प्यठ् शोरि हाचुॅम्   Lalla Vakh लल वाक् -68



आप तॅ थ्वकॅ प्यठ् शोरि हाचुॅम्,

न्यन्दा  सपनिम पथ ब्रोठ् तान्य्।

लल छ्यस् कल ज़ॉह नो छ्यनिम।

अदॅ यलि सपनिस व्यपिहे क्याह।।

अर्थात्

मैने गाली-गलोज ओर थूक-फिटकार शिरोधार्य कर लीं। अतीत से अब तक मेरी निन्दा होती रही। मैं लल्ला हूँ और मेरी निष्ठा ओर एकाग्रता में कभी व्यवधान न पड़ा। और जब उपलब्धि का घट पूर्ण हुआ तो उनमें अन्य कुछ समाता कैसे ?

Contributed By: अशोक कौल वैशाली