अकुय ओंकार युस नाभि दरें *
कुम्भॅइ ब्राहाणडस सुम गरे। *
अख सुय मनथॅर च्यतस करें *
तस सास मनथॅर क्या करें। ।
एक ओंकार (जप) जिसकी नाभि से निकल कर कुंभक द्वारा ब्राह्मरंध्र से जा मिले और यही एक मंत्र जिसके मन-प्राण में बस जाय, उसको सहत्र मंत्रों के जाप की क्या जरूरत अर्थात् उसके लिए अन्य मन्त्र बेकार है
Contributed By: अशोक कौल वैशाली