हा च्यता कवॅ छुइ लोगमुत परमस, Lalla Wakh लल वाख - 54

हा च्यता कवॅ छुइ लोगमुत परमस, Lalla Wakh लल वाख - 54



हा च्यता कवॅ छुइ लोगमुत परमस,
कवॅ गोय अपजिस़ पज़्युक ब्रोत।
दुॅशि-बोज़ वश कोरनख पर-धर्मस् ,
यिनॅ गछ़नँ ज्यनॅ-मरनस क्रोन्त।।
अर्थात्

हे चित्त ! तू औरों पर क्यों आसक्त हुआ है ? क्यो झुठे में सच की भ्रांति हुई तुझे ? (तुम में) बुद्धि की कमी है, जिसने तुझे पर- धर्म के वश कर रखा है: जभी तो) तू आवागमन ओर जन्म-मरण के जाल में उलझा हुआ है।

Contributed By: अशोक कौल वैशाली