स्थापन की अंतहीन पीड़ा

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स्थापन की अंतहीन पीड़ा

महाराज शाह सम्पादक कॉशुर समाचार 2023

 

हमारे विस्थापन को 33 वर्ष से अधिक समय गुजर गया है। भारत में हिन्दुत्ववाद हिन्दूराष्ट्र की बहुत बातें होती है किन्तु कश्मीरी हिन्दू के उत्पीडन को अक्सर इस स्थिति में लोग निराश होकर इसे अपना दरकिनार करके जिस तरह से कश्मीर के विकास में (केवल कश्मीरी मुस्लिम समाज के हित को आगे रखकर कश्मीरी मुसलमान का दिल जीतने की नीति पर काम हो रहा है. इससे कश्मीरी हिन्दू बहुत आहत है। कश्मीरी हिन्दू कश्मीरी मुसलमानों के हित की चिन्ता करना हर सरकार का कर्तव्य समझता है किन्तु मुसलमानों के साथ अपनी निकटता बढ़ाने के लिये हिन्दू को दरकिनार करना और उनसे दूरी कायम करके यह सोचना कि आप किसी प्रकार कश्मीरी मुसलमान का दिल जीत रहे हैं एक भयानक आत्मछल है।

कश्मीरी हिन्दू तो जिस किसी तरह अपने जीवन को बचा कर आगे बढ़ेगा पर आज भी इस बात के लिए कश्मीरी पंडित को अपूरणीय मूल्य चुकाना पड़ रहा है। घरबार जमीनजादाद और स्थान खोये तो 33 वर्ष हो गये और इन 33 वर्षों में जो धीरे-धीरे लुप्त होकर अब पूरी सरह समाप्त होने दिया गया अब वह सब कभी लौट आयेगा इस का विश्वास भी खत्म हो गया है।

कश्मीरी पंडितों की सामूहिक चेतना जो इन की भाषा साहित्य संस्कृति का एक अनिवार्य अंग था जो इनको एक माला में पिरोये रखता था आज छिन्न भिन्न हो गया है। बच्चे अपने मा-बाप से दूर रहने पर मजबूर हो गये हैं। जीवन व्यापन के तौर तरीके बदलने के कारण छोटे से समाज में दिषमताओं के पहाड़ टूट पड़े है। अधिकतर बुजुर्ग लोग जो विस्थापन के समय अपनी जवानी में थे अचानक खुद को बूढ़ा और असहाय देखने बना रहेगा। से भयमीत है। उनकी सारी उम्मीदें जो अपने स्थान अपने घर से जुड़ीं थी अब चकनाचूर नजर आती है कभी बच्चों के पीछे-पीछे तो कभी उनकी देखभाल में जीवन खप गया और आज सबके सब जम्मू या दिल्ली में नियत अकेलेपन में जैसे जीवन के अकस्मात अन्त की प्रतीक्षा करे रहे है। रिश्तेदारी मुहल्लेदारी दुनियादारी तब छूट गई है। दूरिया बढ़ती गई और अकेलापन गहन होता गया।

भाग्य या नियति समझने की भूल करते है और भविष्य की सभावनाओं को ही नकार देते हैं। अधिकतर कश्मीरी हिन्दू सवाल करने लगे हैं कि कौन कश्मीर वापस जाना चाहेगा? क्यों जाये किसके लिये जाये, जब वहा अपना कुछ रहा नहीं, सब कुछ खो गया तो क्यों कोई जाये? तभी कुछ तस्वीरें आस और ढाढस बंधाती है। कश्मीर में हमारे बच्चे एक मुट्ठी भर तैदाद में नियुक्त है। जब ये नौजवान अपने देवस्थानों मन्दिरों और तीर्थ स्थानों पर अपने वार्षिक त्योहार सामूहिक रूप से मनाते हैं जब ये कश्मीर में फिर से कश्यप ऋषि की संतति को जीवत करने का प्रयत्न करते है तो विचार आता है कि अगर कश्मीरी हिन्दू के जातिसहार और 33 वर्ष के उत्पीडन को ध्यान में रखकर सरकार ने हमारी वापसी का रोडमैप कश्मीरी हिन्दू समाज से विचार-विमर्श करके तैयार किया होता तो किंचित इस प्रकार के हमले और टारगेट किलिंग नहीं हुई होती जैसे देखने को मिली। सारे कश्मीरी हिन्दू सहर्ष कश्मीर में आज रह रहे होते। भारत की कोई भी सरकार कश्मीर में अमन चैन पर्यटन की सफलता और कितने ही अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन कश्मीर में क्यों न आयोजित करे जब तक एक भी कश्मीरी पंडित इसमें भागीदार नहीं बनता और वापस कश्मीर में नहीं पुनःस्थापित होता है तब तक कश्मीरी पंडित के लिए एक सुरक्षित वृहद शहर नहीं बसाया जा सकता है और कश्मीर में स्थिति सामान्य होने के सारे दावों पर प्रश्नचिन्ह

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साभार:- महाराज शाह सम्पादक कॉशुर समाचार 2023 एंव जून 2023, कॉशुर समाचार