कश्मीरी पंडित भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया से बाहर
महाराज शाह सम्पादक कॉशुर समाचार 2022
कश्मीरी पंडितो की अपनी जमीन, जायदाद घर-बार, खेत-खलिहान, व्यवसाय और नौकरिया तो 1990 के आतंकी जिहाद ने छीन ली पर अपनी सरकारों ने मूलभूत लोकतांत्रिक अधिकार छीना है। कितने दुःख और विडंबना की बात है कि हमारे अस्तित्व से जुड़ी पहचान को मिटाने के आतंकी मसूबे में जाने-अनजाने हमारी अब तक की सारी केन्द्र सरकारें, न्यायालय, देश के सारे छोटे-बड़े नेता गण, अधिकारी गण, बुद्धिजीवी और आन्दोलन जीवी, सबके सब तटस्थ रूप से हमारे जातिसंहार के मूकदर्शक बने बैठे हैं। मीडिया में हमारी चर्चा करना, हमारे बारे में बात करना देश का माहौल बिगाड़ना और साम्प्रदायिकता फैलाना माना जाता है। अभी भी ऐसे लोग हैं जो हमारे मुद्दों को जबरदस्ती उलझाने की कोशिश करते हैं, भटकाने की और घुमाने की कोशिश करते हैं। मूल समस्या को दरकिनार करके ऐसी बातें करते हैं जिनसे बची-खुची उम्मीदें भी ध्वस्त हो जाती हैं।
हमें सरकार को बार-बार स्मरण दिलाना पड़ता है, हमारे बच्चों पर 1990 की ही तरह कश्मीर में आतंकी खतरा मंडरा रहा है और इसका हल इन्हें उन्हीं स्थानों और उन्हीं लोगों के बीच भेजने में नहीं हैं जहां से इनको बलात भगाया गया है। पर कोई जैसे न सुन रहा है और न ही समझना चाहता है।
वर्षों से एक तन्त्र खड़ा है जो हमें रौंदता और कुचलता है और आप हैं कि हमें उसी तंत्र के हवाले करके खुद चैन की नींद सोना चाहते हैं। आप इसको ही हमारा पुनर्स्थापन कहते हैं, मानो हमारे साथ कुछ हुआ ही न हो, न कुछ घटा हो। इस प्रकार का भ्रम फैलाया जा रहा है किं मानो हमारे पुनर्स्थापन की योजना पर ही काम हो रहा है।
जगह-जगह किवाडबन्द कालोनी में कुछ एक फ्लैट तैयार करके पीएम पैकेज के कुछ मुलाजिमों को रहने की सुविधा देकर यह जतलाया जा रहा है कि इन्हें कश्मीर में वापिस बसाया जा रहा है। यह लिखने में ही तकलीफ होती है कि असंवेदनशीलता की सारी हदें पार की जा रही हैं। हम वही लोग जिनको बन्दूक के बल पर घाटी से निकाला गया। कोई हमारी सुरक्षा के लिए आगे नहीं आया।
सबने कश्मीर को चुनाव, सत्ता और वोट के संख्याबल से जोड़कर देखा और हमारे दर्द की अनदेखी की। हमें 15 वर्ष फटे कनवास के टेंटों में बिना मूलभूत सुविधाओं के अथाह संघर्ष में झोंक दिया गया। 15 वर्ष गोल कँपों में अमानवीय जीवन जीने को छोड़ दिया गया। 20 वर्ष बाद हमें जम्मू में दो कमरे के फ्लैट नसीब हुए। हमारी सारी अस्मिता और जिजीविषा को खण्डित और विलुप्त करने के हर सम्भव प्रयास किये गये। ऐसा झूठ फैलाया गया कि हममें से अधिकांश खाते-पीते मजे करते सम्पन्न लोग हैं। यह हमारे हजारों वर्षों की मूल्यों का प्रभाव था कि हमने अपनी सख्त और समृद्ध संस्कृति का दामन नहीं छोड़ा और भुखमरी में भी विध्या, शालीनता व कुलीनता के गुणों को नहीं छोड़ा और फिर से अपने पैरों पर खड़े होने का साहस किया। किन्तु इस बात को सराहने की जगह हमारा मजाक उड़ाया जाता है, हमारे प्रति किये गये घृणास्पद कृत्यों पर कोई फिल्म बनाता है तो बेशर्मी से उसे झुठलाया जाता है, फिल्म के बारे में जानबूझ कर शक पैदा किया जाता है। ताकि इस्लामी आतंकवाद पर कोई सवाल खड़ा न हो। इन विपरीत स्थितियों के चलते हमें कश्मीर में उन जगहों के प्रत्याशियों को वोट डालने के लिये कहा जाता है बल्कि कहना चाहिए कि वोट डालने को बाध्य किया जाता है जहां हम विगत 33 वर्षों से भी अधिक समय से नहीं रह रहे हैं। सीधी सी बात है कि क्या कश्मीर की नगरपालिका का पार्षद जम्मू या दिल्ली आकर मेरी गलियों, पानी, बिजली और अन्य सुविधाओं का प्रबन्ध करेगा? या किसी भी रूप में वहां का विधायक या सांसद मेरा प्रतिनिधित्व करेगा?
हमारी वर्तमान सरकार से ही अधिक अपेक्षा होना इसलिए बहुत स्वाभाविक है क्योंकि इस सरकार का दावा है कि यह हमारी समस्याओं से अच्छी प्रकार से अवगत है। हमारी समस्या किस प्रकार सारे देश को प्रभावित करती है इसका भी वर्तमान सरकार को पूरा अनुमान होना बहुत स्वाभाविक और अनिवार्य है। क्योंकि हिन्दुओं का पलायन तेजी से देश के अन्य ऐसे स्थानों से भी हो रहा है जहां मुसलमानों की संख्या हिन्दू के बराबर या किचित अधिक हो जाती है। देश के आगे यह समस्या इसलिए ही जोर पकड़ रही है क्योंकि राजनीतिक या कहीं अन्य धार्मिक उग्रवाद के कारण कश्मीरी पंडितों को न्याय नहीं मिला न ही इनके सम्मानजनक रूप से कश्मीर में वापस बसाये जाने पर कोई ठोस योजना बनाई गई जिसके अन्तर्गत इनको वापस कश्मीर में बसाया जाये।
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साभार:- महाराज शाह सम्पादक कॉशुर समाचार 2022 एंव दिसम्बर 2022 कॉशुर समाचार