सभी राजनीतिक पार्टियों के तालमेल से ही चुनावी प्रक्रिया शुरू हो सकती है

- सभी राजनीतिक पार्टियों के तालमेल से ही चुनावी प्रक्रिया शुरू हो सकती है




सभी राजनीतिक पार्टियों के तालमेल से ही चुनावी प्रक्रिया शुरू हो सकती है

जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दावपेंच से जुड़े नेशनल कांफ्रेन्स के पूर्व सांसद श्री प्यारे लाल हण्डडू, जो कश्मीर में हालात बिगड़ने पर राजनीति से दूर होकर दिल्ली में वकालत करने लगे हैं। जिस दल के बलबूते पर श्री हण्डू दो बार प्रदेश के मंत्री बने,आज उसी नेशनल कांफ्रेन्स का अस्तित्व उन्हें कहीं नजर नहीं आता। प्रस्तुत हैं पाञ्चजन्य से हुई उनकी बातचीत के प्रमुख अंशः

iz'ku%& जम्मू-कश्मीर में कब चुनाव होंगे, यह आज विवाद का विषय बना हुआ है, इस बारे में आपकी   

           क्या राय है?

mÙkj%& राजनीतिक प्रक्रिया, जो सामान्य जीवन का एक अंग है उसकी गैर हाजिरी हमे कश्मीर में क्यों दिखाई देती है? उसका कारण यही है कि इस समय वहां कोई भी राजनीतिक पार्टी सक्रिय नहीं है। मुख्यत: देश में दो प्रकार की पार्टियां हैं-एक तो वे हैं जिनका मुख्य केन्द्र दिल्ली में है और दूसरी वे हैं जिनका वर्चस्व केवल घाटी तक ही सीमित है। मुख्य बात तो यह है कि उक्त पार्टियां राजनीतिक प्रक्रिया में कौन-सी भूमिका अदा कर सकती हैं। इस भूमिका को अदा करने में उनके सामने क्या कठिनाइयां आ सकती हैं?

iz'ku%& वे कौन सी पार्टियां हैं जिनका मुख्य केन्द्र दिल्ली एवं कश्मीर में हैं?

mÙkj%& दिल्ली में भाजपा, कांग्रेस, जनता दल एवं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी हैं जबकि घाटी में नेशलन कांफ्रेन्स, पीपुल्स पार्टी, जमात ए- इस्लामी हैं।

iz'ku%& गत चार वर्षों से इन पार्टियों की क्या भूमिका रही है?

mÙkj%& दिल्ली तथा घाटी स्थित राजनीतिक पार्टियां दोनों, १९९० से ही अचानक कश्मीर के परिदृश्य से ओझल हो गईं। तब तक घाटी में राजनीतिक प्रक्रिया का कोई मतलब है, जब तक इन सभी राजनीतिक पार्टियों की मौजूदगी कश्मीर में न हो।

iz'ku%& तो नेशनल कांफ्रेन्स का इस समय क्या दायित्व है?

mÙkj%& नेशनल कांफ्रेन्स मुख्य भूमिका निभा सकती है क्योंकि सबसे ज्यादा जिम्मेदारी इसी पार्टी की है। उसकी गैर-हाजिरी सबसे ज्यादा खटकती है।

iz'ku%& लेकिन इस पार्टी के अध्यक्ष डा फारूक अब्दुल्ला पार्टी के सदस्यों से बिना मिले बयानबाजी करते हैं, ऐसा क्यों?

mÙkj%& वे तो केन्द्र को कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने का मशविरा दे रहें हैं।

 

iz'ku%& लेकिन सवाल यह उठता है कि फारूक अब्दुल्ला अपने पार्टी के नेताओं से तालमेल के बिना खुद ही निर्णय कैसे लेते हैं? क्या ऐसा भी प्रश्न उठ खड़ा हो सकता है कि उन्हें पार्टी के अध्यक्ष पद पर बने रहने देना चाहिए या नहीं?

mÙkj%& अभी इतना समय नहीं है कि सबसे तालमेल बैठाया जाए। फारूक अब्दुल्ला तो अध्यक्ष हैं ही। इस समय नेशनल कांफ्रेन्स के नेताओं को चाहिए था कि कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर कश्मीर के बारे में अपनी आगामी योजना की घोषणा करते !

iz'ku%& अगर इस समय कश्मीर में चुनावी प्रक्रिया शुरू हुई तो लगता है कि सरकार वहां के आतंकवादी संगठनों से तालमेल करे? क्या ऐसा करना उचित रहेगा?

mÙkj%& सरकार को किसी भी आतंकवादी संगठन से सम्पर्क नहीं करना चाहिए। किसी भी बंदूकधारी व्यक्ति से बात नहीं होनी चाहिए। अगर बात हो भी तो भारत के संवैधानिक दायरे के अन्तर्गत ही कोई फैसला लिया जाना चाहिए।

iz'ku%& एक आरोप लगाया जाता है कि कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस ने ही कश्मीर की स्थिति को बिगाढ़ा है ।

mÙkj%& बिल्कुल गलत धारणा है। ऐसी बातें ही हमें असली रास्ते से मोड़ देती हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां कश्मीर की स्थिति के लिए जिम्मेदार है। सभी को तालमेल करके समस्या का समाधान करना चाहिए।

iz'ku%&घाटी से पलायन कर आए कश्मीरी विस्थापितों की ओर सरकार का रवैया उपेदापूर्ण है? आपकी क्या राय है?

mÙkj%& सरकार को चाहिए कि वह इन विस्थापितों को वे सभी सुविधाएं दें जो जीवन के लिए जरूरी हैं। साथ ही उनकी अस्थायी व्यवस्था भी होनी चाहिए, जब तक कि वे सम्मान के साथ घाटी नहीं लौटते तब तक चुनाव भी नहीं हो सकते।

iz'ku%& कश्मीर के सन्दर्भ में अमरीका की क्या नीति रही है?

mÙkj%& कश्मीर के मामले में हमेशा अमरीका की नौति पाकिस्तान समर्थक रही है और इस समय भी है। १९५४-५५ में अमरीका पाकिस्तान फौजी समझौता हुआ तो उस समय भारत को लगा कि कश्मीर अब जंग के माहौल की लपेट में आया है तो उसने घोषणा की कि अब यह तस्य्युर करना कि कश्मीर में जनमत संग्रह होगा, यह एक ख्वाब है।

iz'ku%& हाल ही में अमरीका की एक अधिकारी राविम रैफेल भारत आयी थी। उनके दौरे के बारे में आपका क्या कहना है?

mÙkj%& उनका स्वागत करना ठीक है लेकिन कांग्रेस पार्टी की ओर से दावतों में उसे बुलाने से कांग्रेस की नीतियों पर संदेह पैदा होता है। कांग्रेस तो अमरीका के भारत-विरोधी बयानों की आलोचना करते थकती नहीं है लेकिन दूसरी ओर भारत के दौरे पर आई रैफेल से ये मंत्री भी मिलने गए जिनका जाना कोई जरूरी नहीं था कांग्रेस को चाहिए कि वह अपनी नीति स्पष्ट करे।

iz'ku%& हाल ही में केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के बारे में जो प्रस्ताव पारित किया है क्या वह अमल में लाया जाएगा?

mÙkj%& २२ फरवरी को सदन ने जम्मू-कश्मीर के परिप्रेक्ष्य में प्रस्ताव पारित तो किया है लेकिन वह प्रस्ताव एक उद्घोषणा ही बनकर रह गया और इस पर कोई अमल नहीं हुआ है। यह विडम्बना नहीं तो और क्या है कि ४ साल बाद सरकार सचेत हुई कि कश्मीर में स्थिति कितनी बिगड़ी है और पाकिस्तान कितना दुष्प्रचार कर रहा है।

प्यारे लाल हण्डडू नेशनल कांफे्रन्स के पूर्व सांसद

अस्वीकरण:

उपरोक्त लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं और kashmiribhatta.in किसी भी तरह से उपरोक्त लेख में व्यक्त की गई राय के लिए जिम्मेदार नहीं है।                                                 

साभार:-  प्यारे लाल हण्डडू एवं 10 अप्रैल 1994 पाञ्चजन्य