जम्मू-कश्मीर में RSS की भूमिका - हर मोर्चे पर आगे।

- जम्मू-कश्मीर में RSS की भूमिका - हर मोर्चे पर आगे।




जम्मू-कश्मीर में RSS की भूमिका - हर मोर्चे पर आगे।

इन्द्रेश कुमार   

जम्मू-कश्मीर मुस्लिम बहुल प्रान्त है। देश की स्वतंत्रता से पूर्व महाराजा हरि सिंह इस प्रदेश पर शासन करते थे, परन्तु सत्ता हथियाने के षड्यंत्र में लीन मुस्लिम नेता शेख अब्दुल्ला सद्भावना से ओत प्रोत वातवरण में जहर घोलने में व्यस्त थे। जगह-जगह दंगे हो रहे थे। हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों का अपमान, मां-बहनों को तंग करना, तरह-तरह के साधनों से हिन्दुओं पर हमले करना, आगजनी, और लूटमार का बोलबाला था। कश्मीर घाटी में तो प्रतिदिन ही ऐसी घटनाएं घट रही थीं। धीरे-धीरे ये वारदातें जम्मू क्षेत्र में भी बढ़ने लगीं। हिन्दू युवकों द्वारा इस गुण्डागर्दी का विरोध हो रहा था। सत्ता इस बढते अलगाववाद को रोकने में नाकाम साबित हो रही थी।

ऐसे वातावरण में १९३९ में जम्मू शहर के दीवान मन्दिर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रथम शाखा का शुभारम्भ हुआ। वह अत्यन्त पवित्र दिन था तथा वे लोग कितने भाग्यशाली रहे होंगे जिन्हें प्रथम शाखा में सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त हुआ। थोड़े ही समय में जम्मू कश्मीर में संघकार्य का तेज गति से विस्तार होने लगा और चार-पांच वर्षों में ही संघ समाज में यह भाव स्थापित करने में सफल हो गया कि स्वयंसेवक' हिन्दू समाज का रक्षक है।मुस्लिम कट्टरवादियों को भी यह बात ध्यान में आ गई कि संघकार्य का प्रभाव निरन्तर बढ़ रहा है तथा मुस्लिम अलगाववाद के पड्यंत्र को रोकने में संघ सक्षम है।

१९४७ में देश-विभाजन के समय देकर हिन्दुओं की जानमाल की रक्षा की। वह श्रीनगर व पुंछ के हवाई अड्डे को भारतीय सैनिक विमान उतरने योग्य बनाने का काम था चाहे मुस्लिम दंगाइयों से मां-बहनों को बचाकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने का काम या फिर पाकिस्तान बने हिन्दुस्थान से आए विस्थापित बन्धुओं के लिए निवास तथा भोजन की व्यवस्था करने का काम; स्वयं सेवकों ने बढ़-चढ़कर इन कार्यों को करते हुए अटूट देशभक्ति का परिचय दिया।

१९६५ तथा ७१ में पाकिस्तानी हमला होने पर सैनिकों को सुविधाएं देने तथा शरणार्थियों को बसाने में स्वयं सेवकों ने दिन-रात एक कर काम किया। कश्मीर में १९८६ में कट्टरपंथी मुसलमानों ने मन्दिर जलाए, मूर्तियों का अपमान कर हिन्दुओं को बेघर करने की कोशिश की। ऐसे समय में स्वयंसेवकों ने श्रीनगर में हिन्दू रिलीफ कमेटी' तथा जम्मू में 'दंगा पीड़ित सहायता समिति,' बनाकर समाज को पुन: व्यवस्थित करने के लिए लाखों रुपए एकत्रित कर वितरित किए। इन दंगों से देश की प्रेस को जाग्रत करने तथा दिल्ली दरबार को जगाने का काम तीन स्वयंसेवकों के एक दल ने किया। इस दल ने दिल्ली जाकर राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को कश्मीर में हो रहे अत्याचारों के बारे में जानकारी दी। ग्रम मोर्चे पर सहायक की आज अगर कहीं गो वध का अभ्यास करते हुए। होता है अथवा गायों से भरे ट्रक कश्मीर में वध के लिए जाते हैं तो स्वयंसेवक गो वध को रोकने के लिए भरपूर प्रयास करते हैं। कभी-कभी यह कार्य करते हुए जेल जाना पड़ता है तथा झूठे मामले भी बना दिए जाते हैं। परन्तु

स्वयंसेवक कर्तव्य निभाने हेतु सभी प्रकार की मुसीबतें झेलकर समाज का सहारा बनते हैं। १९८४ में इन्दिरा गांधी की हत्या के पश्चात हजारों सिख जम्मू में फस गए, उनके निवास व भोजन की व्यवस्था का कार्य स्वयंसेवकों ने ही किया।

 

प्रजा परिषद् का आन्दोलन

पं. नेहरू की ' कृपा' से महाराजा हरि सिंह को विवशता से सत्ता छोड़कर प्रदेश से जाना पड़ा। जम्मू-कश्मीर रियासत की बागडोर कट्टरपंथी मुस्लिम नेता शेख अब्दुल्ला के हाथ में दे दी गई । उसने कश्मीर को हिन्दुस्थान से अलग कर एक नए देश की कल्पना को साकार करने का घिनौना षड्यंत्र रचा। ऐसे समय में प्रजा परिषद् के रूप में स्वयंसेवकों ने जम्मू में 'दो प्रधान, दो विधान, दो निशान के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। इस आन्दोलन का नेतृत्व पं. प्रेमनाथ डोगरा ने किया तथा देश की एकता व अखण्डता को बनाए रखने के लिए तत्कालीन जनसंघ के संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 'परमिट सिस्टम' को तोड़कर अपने बलिदान द्वारा देश भक्ति का एक जीता-जागता उदाहरण दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। सैकड़ों स्वयंसेवकों ने लम्बी जेल यात्रा की, जहां उनको काफी मानसिक व शारीरिक यातनाएं सहनी पड़ीं। इस बीच १८ स्वयंसेवक कश्मीर पुलिस की गोलियों से शहीद हुए। यह आन्दोलन विश्व के इतिहास में अपने आप में एक मिसाल थी। शेख अब्दुल्ला देशद्रोह के आरोप में जेल भेज दिए गए। इस आन्दोलन से सफलता प्राप्त कर स्वयंसेवक विभिन्न कार्यों के माध्यम से समाज को जाग्रत करने तथा सेवा करने में जुट गए।

आज देशभर में लाखों स्वयंसेवक सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से समाज को जाग्रत, एवं संगठित करते हुए भारतीय जीवन मूल्यों की स्थापना हेतु जुटे दिखाई दे रहे हैं। स्वयंसेवकों के इस व्यवहार को देखकर एक सर्वोदयी नेता ने संघ को नया नाम दिया, 'R S.S. means Ready for Selfless Service': अर्थात रा.स्व. संघ का अर्थ है कि एक बल जो स्वार्थ-रहित सेवा के लिए तत्पर रहता है। वर्तमान में चाहे समाज में हिन्दुत्व से ओतप्रोत भाईचारे के जागरण का काम हो अथवा समाज की सेवा तथा रक्षा का, स्वयंसेवक समाज के आगे आगे चलता दिखाई दे रहा है।

प्रदेश भर में हिन्दू समाज नाना प्रकार के संकटों से घिरा है। कई बार लोग संघ की बैठकों में यह प्रश्न पूछते हैं कि संघ हिन्दू समाज के लिए क्या कर रहा है। इसी के उत्तर में हैं उन सभी संगठनों की जानकारी दी जा रही है जो प्रदेश में सामाजिक समरसता के सेतु बांध बनने में अग्रसर हैं।

 

विराट् हिन्दू सम्मेलन

 

कश्मीर के शहीद

तेजकृष्ण राजदान (३०)

सरकारी कर्मचारी,

निवासी: बच्छगाम, जिला बड़गाम

हत्या १२ फरवरी, १९९० अपराध-देशभक्ति

तेजकृष्ण राजदान की नियुक्ति पंजाब में हुई थी। वे छुटटी लेकर श्रीनगर अपने

परिवार से मिलने आए हुए थे। उनका एक पुराना मुसलमान सहयोगी, जो उनके साथ जब ये कश्मीर में थे, काम करता था, उनसे मिलने आया। दोनों लालचोक जाने वाली बस में साथ चढ़े । बीच रास्ते में एक स्थान पर जब बस  ठहरी, तो श्री राजदान के मुसलमान सहयोगी ने अचानक पिस्तौल निकाली और उनकी माती पर गोली दाग दी। इससे भी उसे संतोष नहीं हुआ, तो तड़पते हुए राजदान को गाड़ी से बाहर घसीटा और अन्य यात्रियों को आदेश दिया कि लातें मार- मारकर इसकी जान निकाल दो। फिर उनके शव को सड़क पर घसीटा गया। पास ही की मस्जिद में ले जाकर उस शव को नुमाइश' के लिए  टांग दिया गया। पुलिस के आने तक कई घंटे लाश यहाँ उसी तरह लटकी रही।

 

 

१९७० में विश्व हिन्दू परिषद  की शाखा जम्मू में स्थापित होने के दस वर्ष के भीतर ही जातीय तथा राजनीतिक भेदभाव को भुलाकर हिन्दू एक मंच पर आते दिखाई देने लगे। १९८१ में जम्मू में एक विराट् हिन्दू सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें एक लाख से अधिक हिन्दू-जाति, सम्प्रदाय तथा अमीर-गरीब के भेद से ऊपर उठकर हिन्दू धर्म की जय-जयकार कर उठे और यहीं से हिन्दू जागरण के सम्मेलनों का सिलसिला शुरू हुआ। फिर क्या हिन्दू बहुल, और क्या मुस्लिम बहुल, हर क्षेत्र के कार्यकर्ता समाज को साथ लेकर हिन्दुत्व से भरपूर वातावरण निर्माण करने में जुट गए। १९८३ से १९८८ तक जगह-जगह हिन्दू सम्मेलनों का आयोजन होता रहा। जम्मू सम्भाग के भद्रवाह, पलांवाला, पुंछ, नगरोटा, भलेस, रियासी, पलोड़ा, किश्तवाड़ सभी ओर हिन्दुत्व का उमड़ता समुद्र दिखाई दिया। जो समाज हिन्दू का नाम लेने में संकोच का अनुभव करता था, यह हिन्दू होने का गर्व महसूस करने लगा। मुस्लिम बहुल क्षेत्र पुंछ, भद्रवाह, किश्तवाड़ में अब सम्मेलन करने के लिए निर्णय किए गए, तब सभी के मनआशंकित  थे कि क्या सम्मेलन हो सकेंगे परन्तु  सुदूर सघन पहाड़ी क्षेत्रों में १०० किलोमीटर तक की दूरी के बीच नदी, नाले, पर्वत पार करते हुए हजारों की संख्या में हिन्दू इन सम्मेलनों में भाग लेने के लिए आए।

पुंछ सम्मेलन में सिख बन्धु काफी संख्या में सम्मिलित हुए तथा मंच से सम्बोधित करते हुए सिख नेताओं ने जोर देकर कहा कि हिन्दू सिख एक हैं, अलग-अलग कौम नहीं। सिख हिन्दू समाज के ही अंग हैं।

रियासी सम्मेलन में एक नया अनुभव आया कि जब लंगर में सभी बन्धु भोजन कर रहे थे, तब एक अनुसूचित जाति के बुजुर्ग ने शोर मचाना शुरू कर दिया कि कैसे हिन्दू हैं जो मुझे न तो रोटी देते हैं अनुसूचित जाति के हाथ से खाते हैं। वह बुजुर्ग जब यह बात कर ही रहा था कि १०-१२ अनुसूचित जाति के युवक वहां आ गए। उनमें से एक युवक तेजी से आगे बढ़ा और उसने उस बुजुर्ग को कहा 'बापू तू झूठ बोलता है, देखो हम रोटी परोस रहे हैं और सब हमसे लेकर खा रहे हैं कुछ बोल रहा है यह गलत है और यहां कोई जो भेदभाव नहीं है। अगर तुम झूठ बोलकर भड़काने का काम करोगे तो ठीक नहीं होगा।' इस घटना को देख सुनकर यह विश्वास चारों ओर फैलता दिखाई दिया कि अब वे दिन दूर नहीं जब छुआछूत की दीवार टूट जाएगी और सभी जन हिन्दू हैं, एक हैं, का माहौल साकार हो उठेगा।

किश्तवाड़ क्षेत्र मुस्लिम बहुल है जहां ३२७ गांवों में से २५ हजार से अधिक हिन्दू सम्मेलन में आए थे। सन्तों व अन्य विद्वानों द्वारा रामजन्मभूमि, गो-रक्षा आदि विषयों पर प्रवचन सुनने के लिए सैकड़ों मुसलमान भी सभा में उपस्थित रहे। सम्मेलन के बाद अनेक मुसलमान यह बातें करते हुए पाए गए कि वक्ताओं ने बातें तो सब सच कही हैं और इतिहास में से कही हैं, तर्कसंगत भी लगती हैं तो फिर हमारे नेता गुमराह कर क्यों भड़काते हैं?

१९८३ में देश भर में एकात्मकता रथयात्रा निकाली गई। जम्मू-कश्मीर प्रदेश में भी यह यात्रा क्षीरभवानी मन्दिर (कश्मीर) से शुरू होकर प्रदेश के सैकड़ों स्थानों से होती हुई लखनपुर (जम्मू- में सम्भाग) सम्पन्न हुई। इस यात्रा में लाखों लोगों ने भाग लिया। जगह-जगह मुसलमान पुरुष महिलाएं भी गंगाजल व प्रसाद लेने पंक्तियों में खड़े दिखाई दे रही थीं।

इन सम्मेलनों का दूरगामी प्रभाव यह उभर रहा है कि हिन्दू दीनहीन स्थिति से उभरकर अपने धर्म व सम्मान की रक्षा हेतु जूझने लगा है।

 

हिन्दू रक्षा समिति का योगदान

कुछ वर्ष पूर्व यह महसूस किया गया कि मन्दिरों को जलाने, मूर्तियों को खण्डित तथा गो माता का वध करने वाले जो अराजक तत्त्व है इनका डटकर विरोध होना जरूरी है। इसके लिए हिन्दू रक्षा समिति का गठन किया गया जिसके नेतृत्व में संघ के स्वयंसेवक तथा समाज के जुझारू नवयुवक मैदान में कूद पड़े। १९८०-८१ में जब सरकार ने धर्म विधेयक विधानसभा में लाकर धार्मिक सम्पत्ति का अधिग्रहण करना चाहा तब हिन्दू रक्षा समिति ने प्रभावी आन्दोलन छेड़कर सरकार को उक्त विधेयक पारित करने से रोकने में सफलता प्राप्त की।

१९८६ में गुलाम मोहम्मद शाह ने जम्मू- कश्मीर का मुख्यमंत्री बनते ही अपने कट्टरपंथी होने का सबूत दिया। शाह सरकार ने श्रीनगर सचिवालय परिसर में नमाज अदा करने हेतु मस्जिदनुमा कमरा बनाया और सर्दियों में जब दरबार जम्मू आया तो जम्मू सचिवालय में सैनी बिरादरी के पवित्र स्थान के हॉल को नमाज पढ़ने योग्य बनाकर मस्जिद का रूप देने का निर्णय किया गया। उल्लेखनीय है कि प्रदेश सचिवालय का कामकाज ग्रीष्मकाल के ६ महीनों में श्रीनगर में और सर्दियों में जम्मू में होता है।

हिन्दू रक्षा समिति के तत्त्वावधान में वैद्य विष्णुदत्त (जम्मू-कश्मीर के वर्तमान सह प्रान्त-संघचालक) के नेतृत्व में इस मजहबी उन्माद भरे षड्यंत्र का हिन्दुओं की विभिन्न संस्थाओं तथा प्रमुख नागरिकों द्वारा विरोध किया गया १६ कार्यकर्ता लगभग २० दिन जेल में रहे। कई कार्यकर्ताओं पर डेढ़ वर्ष तक मुकदमे चले । अन्त में निर्दोष साबित होने पर मुकदमे रद्द हो गए।  अंततोगत्वा परिणाम सामने था गुलाम मोहम्मद शाह की सरकार बर्खास्त हुई। समिति ने इस लड़ाई में विजय प्राप्त की और दोनों सचिवालय से मस्जिदनुमा कमरे हटा दिए गए। आगे किसी भी सरकारी परिसर में किसी मजहब का कोई धार्मिक स्थान नहीं बनने दिया जाएगा यह आश्वासन तत्कालीन राज्यपाल ने समिति के पदाधिकारियों को दिया।

जम्मू-कश्मीर में यह बात प्राय: देखने में आती है कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कुछ उन्मादी मौलवी, मुसलमानों को हिन्दुओं पर जुल्म ढाने के  लिए भड़काते हैं। हिन्दू देखता रह जाता और चपुचाप मार खाता रहता था। परन्तु गत तीन-चार वर्षों में इन परिस्थितियों में परिवर्तन आया है। १९८५ में राजौरी, सितम्बर १९८६ में किश्तवाड़ और जुलाई १९८८ में पुंछ में कुछ उन्मादी मुसलमानों ने दंगे भड़काकर हिन्दुओं को इन दंगों की आग में लपेट लिया। परन्तु हिन्दुओं में जो एकता मंत्र फूंका गया था उसने कमाल कर दिखाया। हिन्दुओं ने अत्याचारों का डटकर मुकाबला किया। इन सभी स्थानों पर प्रशासन ने एकतरफा कार्रवाई की।कई स्वयंसेवक कार्यकर्ताओं पर आतंकवादी अधिनियम लगाए गए। कई कार्यकर्ताओं को झूठे मुकदमों में फंसाया गया परन्तु हिन्दू झुका नहीं।

 

स्वधर्म में लाने का प्रयास

इस हिन्दू जागरण ने एक नया अध्याय खोला। जगह-जगह से समाचार मिलने लगे कि मुसलमान हिन्दू लड़कियों को भगाकर ले गए। लालच देकर व उनकी मजबूरी का लाभ उठाकर अनुसूचित जाति के परिवारों का धर्मान्तरण किया जा रहा है। ऐसे भी समाचार मिले कि मुसलमान/ईसाई बने लोग हिन्दू बनना चाहते हैं। १९८४ में इस दिशा में ठोस कदम उठाया गया और 'धर्म प्रसार समिति' नामक संस्था का गठन किया गया। इस संस्था के कार्यकर्ताओं के सम्पर्क में आकर चार- पांच वर्षा की अल्प अवधि में ३८ ईसाई मूल के तथा ४५ मुस्लिम मूल के लोगों ने सहर्ष हिन्दू धर्म स्वीकार किया। लगभग ४६ ऐसे हिन्दू थे जिनको लालच या धोखा देकर धर्मान्तरण कराया गया था, उनको स्वधर्म में वापस लाया गया। इस कार्य में उदारवादी मुसलमानों ने भी सहयोग दिया।

अभी तक ११ युवतियों के विवाह इस समिति के द्वारा रचाए जा चुके हैं। ५ अप्रैल, १९८७ को वीणा नाम की कश्मीरी युवती के साथ विवाह हेतु पालमपुर (हिमाचल प्रदेश) के प्रमुख व्यवसायी व संघ कार्यकर्ता कपिल शर्मा ने स्वयं को प्रस्तुत कर एक नया अध्याय शुरू किया। समाज के सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में यह विवाह पठानकोट में सम्पन्न हुआ। ११ दिसम्बर, १९८७ को जम्मू में हिन्दू धर्म में आए परिवार की कन्या शबीना (सीमा) का विवाह दिल्ली के राकेश कुमार सोबती (संघ कार्यकर्ता) के साथ धूमधाम से रचाया। इस विवाह में जम्मू शहर के सभी गणमान्य लोग उपस्थित थे।

बिलावर क्षेत्र के एक मुसलमान युवक मकसूद अली ने सहर्ष हवन यज्ञ कर अपना नाम मधुसूदन धारण किया तो उसका विवाह रानी नामक हिन्दू कन्या से धूमधाम से सम्पन्न हुआ। आज मधुसूदन अपनी ससुराल में रहकर एक सच्चे हिन्दू का जीवन व्यतीत कर रहा है।

तहसील रियासी के टेकरी ग्राम के १५ सदस्यों के परिवार ने सहर्ष १४ फरवरी, १९८८ को सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में हिन्दू धर्म अपनाया। इस परिवार के मुखिया ने कहा 'पांच पीढ़ी पूर्व हम केसर ब्राह्मण थे और आज अपने पूर्वजों के कर्ज को चुकाने तथा उनकी गलती को सुधारने का जो सौभाग्य हमें मिला इस पर हम बहुत प्रसन्न हैं।' बाद में कुछ मुसलमान नेताओं ने उनको साठ हजार रुपए देकर फिर इस्लाम में लाने की असफल कोशिश की। जब लालच काम नहीं आया तो लाठी तथा बन्दूक से हमला करके डराया। परन्तु यह परिवार डगमगाया नहीं।

जम्मू के तालाब खट्टीका की एक मुस्लिम युवती-जिसका वर्तमान नाम अंजू है, ने एक हिन्दू महाजन युवक से विवाह रचाया। अंजू के माता पिता को मुसलमानों ने तंग किया और वे उससे परेशान हो अपनी सम्पत्ति बेचकर लाहौर चले गए। अंजू के मायके में कोई नहीं रहा। धर्म प्रचार समिति पिछले दो वर्ष से उसके मायके के सभी दायित्व निभा रही है।

उमा नाम की युवती, जिसका पति मानसिक रोगी था, जब आजीविका की तलाश में अपने तीन बच्चों के साथ भटक रही थी तब एक गुण्डे का शिकार हुई थी। परन्तु समिति के कार्यकर्ताओं ने उसे गुण्डे के चंगुल से निकालकर सुरक्षा प्रदान की तथा नेहाघर में भर्ती करवा दिया। वहां से वह अब कस्तूरबा ट्रस्ट की सहायता से आरोग्य सेविका का प्रशिक्षण लेने इन्दौर चली गई है।

इसी प्रकार राकेश जोशी तथा कमला अपने पांच बच्चों के साथ इस्लाम छोड़ कर हिन्दू बने।

कश्मीर के शहीद

अशोक कुमार काजी (३०)

दस्तकारी विभाग में कर्मचारी,

निवासी: शेषयार, श्रीनगर

हत्या : २४ फरवरी, १९९०

अपराध- देशभक्ति

हत्या वाले दिन जेनदार मुहल्ले में बाजार  जाते हुए उन्हें ३ आतंकवादियों ने घेर लिया। आतंकवादियों ने उनके टखनों पर गोली चलाई। वे गिर पड़े और चौख-चौखकर सहायता की पुकार करने लगे। मगर राहगीरों या दुकानदारों में से कोई न बोला, न आया। ज्यादातर लोगों ने मुंह फेर लिया और जाने-माने समाजसेवक को पहचानने से भी इनकार कर दिया। पैशाचिक मजा लूटने के लिए तीनों हत्यारों ने मिलकर उनके तड़पते शरीर के चारों तरफ नाचना शुरू कर दिया। उनके बाल नोचे, बार-बार थप्पड़ मारे, मुंह पर थूका। एक ने तो उन पर पेशाब भी किया। खून बहाते तड़पते मौत की तरफ बढ़ते रहे। उन्होंने मौत मांगी पर यह भी नहीं दी गई। आतंकवादी मजा लेते रहे। ये उसे तिल-तिलकर मारना चाहते थे। मगर अचानक दूर किसी पुलिस गाड़ी का सायरन बजा और घबराकर आतंकवादियों ने उनके पेट और छाती  में गोलियों की बौछार कर दी। बर्फ से ढकी सड़क पर वे नृशंस हत्यारे शव को छोड़कर भाग गए।

 

 

आज यह परिवार आठ-नौ सौ रुपए मासिक कमाते हुए सहर्ष अपना जीवन निर्वाह कर रहा है। इनके पांचों बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले, इसके लिए भी व्यवस्था की गई है।

जुलाई, १९८८ में नौशेहरा क्षेत्र के घुनीपोठा नामक ग्राम के ज्ञानचन्द को परिवार सहित राजौरी में उसकी गरीबी तथा मजबूरियों का लाभ उठाकर इस्लाम में धर्मान्तरित कर दिया गया। परन्तु राजौरी  व नौशेरा के कार्यकर्ताओं की जागरूकता तथा तुरन्त कार्रवाई ने इस परिवार को पुनः कुछ दिनों पश्चात हिन्दू बने रहने के लिए प्रेरित किया।

इसी प्रकार से २५ जुलाई, १९८८ को बटोत की मस्जिद से यह घोषणा हुई कि रामबन-बटोत के बीच पीड़ा से कुछ किलोमीटर ऊपर की ओर करमा नामक ग्राम के धनीराम तथा परिवार के शेष ८ सदस्य इस्लाम स्वीकार कर रहे हैं। इस परिवार का इस्लाम में स्वागत करते हुए मौलवियों द्वारा तौली तकरीरें हुई। परन्तु रामबन व बटोत के कार्यकर्ताओं को जैसे ही पता चला, वे सक्रिय हो गए और सभी प्रकार का जोखिम लेकर २१ अगस्त को करमा ग्राम में ही हवन, यज्ञ कर परिवार को स्वधर्म में रखने में सफलता प्राप्त की।

 

रोटी-बेटी का रिश्ता

प्रत्येक हिन्दू पर्व पर ऐसे सभी परिवारों को मिठाई तथा अन्य घरेलू सामान भेंट करते हुए इन परिवारों से रोटी-बेटी का रिश्ता बनाया गया है। उदाहरण साक्षी हैं कि हिन्दुत्व के जागरण से समाज अपनी रूढ़ियों तथा बेड़ियों को तोड़कर है। नए अध्याय को शुरू कर चुका हिन्दू जागरण को लहर चारों तरफ अपना प्रभाव बढ़ा रही है। इस देश का स्वाभिमान शून्य नागरिक अब अपने सम्मान अर्थात हिन्दुत्व को समझने लगा है।

 

समाज में सेवा कार्य

आज देश के ४० प्रतिशत से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे का जीवन जी रहे हैं। अनुसूचित वर्ग इस्लाम व ईसाई मजहबी प्रचारकों का विशेष निशाना बनते हैं। कुछ राजनीतिक दल अनुसूचित जाति के लोगों को बरगलाकर उकसाने लगे हैं तथा उन्हें हिन्दुओं से अलग करने का पड्यंत्र रच रहे हैं। छुआछूत का भयानक रोग देश को ग्रस रहा है। स्वयंसेवकों ने जम्मू-कश्मीर में इस चुनौती को स्वीकार किया है।

१९८४ में प्रदेश में 'सेवा भारती का कार्य आरम्भ हुआ। मई, १९८५ में जम्मू में रक्तदान शिविर लगाया गया। प्रथम रक्तदान का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ।

जम्मू की पांच अनुसूचित बस्तियों में औषधालय, बाल संस्कार व शिक्षा केन्द्रों द्वारा भेद-भाव समाप्त कर अनुसूचित लोगों के मन में यह बात बिठाने में सफलता मिल रही है कि संघ समरसता का मंत्र दे रहा है तथा समाज द्वारा किए गए अत्याचार के विरोध में खड़ा होकर सबको अपना रहा है।

'वसुधैव कुटुम्बकम' प्रकल्प में समाज के प्रपुर वर्ग के लोग २० रुपए से ५० रुपए मासिक देकर एक अनुसूचित वर्ग के बच्चे की पढाई व संस्कार शिक्षा का खर्च उठाते हैं। इस योजना के अन्तर्गत अभी तक २७ बच्चे हैं।

समय-समय पर रक्तदान व जांच शिविरों का आयोजन होता है। कछुआ, जम्मू और राजौरी में कम से कम एक जरूरतमन्द बन्धुभगिनी को रक्त दिया जाता है। स्वयंसेवकों के शौर्यपूर्ण व सेवाभाग कार्यों को देख जम्मू के एक दानी रक्षपाल शास्त्री ने एक मारुति वैन भेंट की। यह वैन सेवा भारती के चल-चिकित्सालय के रूप में जम्मू तथा आसपास के क्षेत्रों में साप्ताहिक औषधालयों द्वारा सेवाकार्य में लाई जा रही है।

 

जम्मू विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग की अध्यक्षा डा वेद धई के सहयोग से कई सेवा बस्तियों (अनुसूचित बस्तियों) में संस्कार केन्द्र चलाए जा रहे हैं।

 

स्वास्थ्य सेवा

आज विवेकानन्द मेडिकल मिशन अस्पताल (अम्बफला)का नाम सर्वविदित है। जाति, मजहब से ऊपर उठकर मानवमात्र की सेवा का मिशन लेकर यह अस्पताल कार्य कर रहा है। ४२ बिस्तरों का यह अस्पताल वर्ष में तीन स्थानों पर नि:शुल्क नेत्र आपरेशन शिविरों का आयोजन करता है। विश्व हिन्दू परिषद् वाले भी वर्ष में दो स्थानों पर ऐसे शिविर आयोजित करते हैं। इन शिविरों में हिन्दू, मुसलमान, ईसाई सब का उपचार होता है। रियासी के इस शिविर में ८० लोगों के नेत्रों का आपरेशन हुआ जिसमें अधिकांश मुसलमान थे।

विवेकानन्द मेडिकल मिशन अस्पताल में इस समय आई सर्जिकल, जरनल सर्जिकल, गायनी (Gyanae) तथा अन्य मेडिकल की शाखाएं हैं।

 

संस्कार का केन्द्र

रा.स्व. संघ के पूर्व सरकार्यवाह भाऊराय देवरस की प्रेरणा से बच्चों को दिशा देने हेतु विद्या भारती के अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर प्रदेश में १९८४ में भारतीय शिक्षा समिति का कार्य प्रारम्भ हुआ। समिति द्वारा प्रदेश भर में १७ विद्यालय चलाए जा रहे हैं। इन विद्यालयों में शिक्षा एन.सी.ई. आर.टी. शिक्षा के पाठ्यक्रम के अनुसार दी जाती है साथ हो बच्चों में देशभक्ति, समाज सेवा तथा अच्छे नागरिक के गुणों को पैदा करने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम किए जाते हैं।

किश्तवाड़ में कई मुसलमानों ने अपने बच्चों को इस्लामिया विद्यालय में न भेजकर भारतीय या मन्दिर में पढ़ने भेजा है। उनके माता पिता पूछने पर उत्तर मिला उनके  बच्चों को अच्छे संस्कार तथा शिक्षा, संघ के विद्यालयों में ही मलेगी। किश्तवाह विद्यालय के भवन निर्माण के लिए का मुसलमानों ने हजारों रुपए का चन्दा दिया है।

 ( राष्ट सेविका समिति )

जम्मू में अखिल भारतीय राष्ट्र सेविका समिति की शाखाएं तेज गति से कार्य कर रही हैं। समिति की शाखाएं भद्रवाह, किश्तवाड़, रामबन, कठुआ, अखनूर, गजनस्, जम्मू आदि स्थानों पर काम कर रही है। नारी अबला नहीं सबला है, इसके लिए स्वयं रक्षा का प्रशिक्षण भी इन शाखाओं में विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से दिया जाता है। प्रत्येक वर्ष सेविकाओं का ३ से ७ दिन का एक प्रशिक्षण वर्ग लगाया जाता है जिसमें प्रायः ७०- ७५ बालिकाएं एवं महिलाएं भाग लेती हैं।

समाज में अन्य संगठन विद्यार्थी जगत में - अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, मजदूर क्षेत्र में भारतीय मजदूर संघ, किसान क्षेत्र में भारतीय किसान संघ, प्रबुद्ध बन्धुओं में भारत विकास परिषद, डाक्टरों में नेशनल मेडीकोज, वनवासियों में वनवासी कल्याण आश्रम अपनी-अपनी कार्यपद्धति के अनुसार कार्यरत हैं - इन सभी सस्थाओं का अपना-अपना प्रभाव क्षेत्र है।

कश्मीर और लद्दाख में संघ कार्य कभी-कभी कुछ लोगों के मन में एक प्रश्न उभरता है कि क्या कश्मीर तथा लद्दाख में भी हिन्दू जागरण का कार्य है? उत्तर है हां। हिन्दू यूथ फोरम, श्रीभट्ट स्मारक समिति तथा भगवान बुद्ध लोक कल्याण संघ के रूप में कार्य शुरू हो चुका है।

कश्मीर घाटी के हिन्दू नवयुवकों का मंच है हिन्दू यूथ फोरम । जहां हिन्दू यूथ फोरम ने कश्मीर के अल्पसंख्यक हिन्दू समुदाय में आत्मविश्वास बढ़ाने में योगदान दिया वहीं बिखरे हुए हिन्दुओं को एकजुट करने में काफी सफलता प्राप्त की। इसके सम्मेलनों में सैकड़ों युवकों ने दहेज न लेने का संकल्प भी किया।

कश्मीर के हिन्दू 'शिवरात्रि महोत्सव' को बहुत धूमधाम से मनाते हैं। संघ के स्वयंसेवकों ने श्रीभट्ट, जो कि कश्मीरी समाज में समाज सुधारक के रूप में लोकमान्य हैं, के नाम से एक थे संस्था का गठन किया-' श्रीभट्ट स्मारक समिति ।  इस मंच द्वारा कश्मीरी समाज के श्रेष्ठ पुरुषों को पुरस्कार देकर सम्मानित करने की योजना बनी जिन्होंने चित्रकारी, संगीत, शिक्षा, साहस, सेवा आदि क्षेत्रों में समाज को दिशा दी। घाटी से हिन्दुओं के सामूहिक विस्थापन के बाद समिति का कार्य जम्मू में चल रहा है।

लद्दाख में पिछले सैकड़ों वर्षों से वहा को सामाजिक कमजोरियों, गरीबी, अशिक्षा, सामाजिक बन्धन आदि का लाभ उठाकर लगभग ४५ प्रतिशत बौद्धमत के अनुयाइयों का इस्लाम में धर्मान्तरण किया गया है। अभी कुछ वर्षों से चर्च की भी गतिविधियां वहां चल रही हैं।

लद्दाखी जन्म से देशभक्त तथा कठोर परिश्रम करने वाले होते हैं। पिछले कुछ वर्षों में यहां राष्ट्रीय चेतना के जागरण का कार्य शुरू हुआ है। एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता लद्दाख क्षेत्र में राष्ट्रभक्ति के भावों को जाग्रत करने में संलग्न है। यहां जलवायु अति शुष्क व ठण्डी है। सांस लेने में तकलीफ होती है। मैंने एक बार एक कार्यकर्ता से पूछा कि दैनिक जीवन तो बहुत कठिन है आपको कौन-सी बात इन सब कठिनाइयों को सहने की प्रेरणा देती है? उत्तर मिला' भारत मां की सेवा की इच्छा अपने भाइयों पर जो सामाजिक कष्ट हैं उनसे मुक्त होने के लिए वे जागरूक हों, यही लक्ष्य मेरी प्रेरणा शक्ति है।

कुछ वर्ष पूर्व लद्दाख से बौद्ध समाज की जागरूकता व राष्ट्रीय भावना से प्रेरित कार्यकर्ताओं की मेहनत ने चर्च को इस बात के लिए मजबूर किया कि ५४ बौद्ध बच्चे स्वधर्म में वापस लौटाए गए। चर्च ने शिक्षा तथा सुनहरे भविष्य का ज्ञासा देकर ग्राम-ग्राम से बौद्ध बच्चों को श्रीनगर के मिशनरी स्कूल में भर्ती करके उनके नाम परिवर्तित करने का एक घिनौना पड्यंत्र रचकर चुपचाप इन बच्चों का धर्मान्तरण कर डाला था। सेवा के रूप में भेडिया'-चर्च की इस असलियत को जय कार्यकर्ताओं ने बौद्ध समाज के सामने रखा तब ध्यान में आया कि बौद्ध समाज सब जानता य समझता है परन्तु प्रदेश व केन्द्र सरकार के व्यवहार के कारण स्वयं को अकेला महसूस कर चुप है। परन्तु जब सहारा मिला तो उसने चर्च के खिलाफ आन्दोलन छेडकर ५४ बच्चों को चर्च से वापस लेने में सफलता प्राप्त की।

बौद्ध बच्चों व नागरिकों को शिक्षा व अच्छे संस्कार देने हेतु भगवान बुद्ध लोककल्याण संघ नामक संस्था का गठन किया गया है। .

शेख के पूर्वज का नाम-बालमुकुन्द कौल

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल भी अपनी जीवनी 'आतिशे चिनार में इस सत्य को नकार नहीं सके कि उनके पूर्वज हिन्दू थे और कुछ पीढ़ी पूर्व मुसलमान बनने से पहले उनके पूर्वज का नाम 'बालमुकुन्द कौल' था।

 

अस्वीकरण:

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साभारः - इन्द्रेश कुमार एवं 10 अप्रैल 1994 पाञ्चजन्य