अगर डा जोशी लाल चौक नहीं पहुंचते तो भी पूरे श्री नगर में तिरंगा फहरता जांबाज नौजवानों की तिरंगा योजना

- अगर डा जोशी लाल चौक नहीं पहुंचते तो भी पूरे श्री नगर में तिरंगा फहरता जांबाज नौजवानों की तिरंगा योजना




अगर डा जोशी लाल चौक नहीं पहुंचते तो भी पूरे श्री नगर में तिरंगा फहरता जांबाज नौजवानों की तिरंगा योजना

२४ जनवरी की शाम को जब यह निश्चित संकेत मिल गए कि डा. जोशी और उनके साथी श्रीनगर पहुंच जाएंगे तब श्रीनगर घाटी में रुके कार्यकर्ताओं के इन समूहों को बताया गया कि वे अपने स्थानों से बाहर न निकलें और न ही तिरंगा फहराने का प्रयास करें तथा पहले से निर्धारित मार्गों और साधनों से वापस जम्मू लौटें। इस सारी योजना में जान का जोखिम था, और सभी कार्यकर्ता यह जोखिम उठाकर ही श्रीनगर पहुंचे।

बाधाओं और खतरों के बीच  से गुजरती और देश के गद्ारों को चुनौती देती हुई डा. मुरलीमनोहर जोशी के नेतृत्व में एकता यात्रा अन्ततः श्रीनगर के उस लाल चौक पर पहुंच ही गई जो आतंकवादियों का गढ़ कहलाता है। 45  दिन में 15 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर 26 जनवरी, 1992 की सुबह 8 बजकर २५ मिनट पर ज्यों ही जोशी लाल चौक पहुंचे, चारों तरफ वन्देमातरम् भारत माता की जय के घोष गूंजने लगें देशप्रेमियों की इन हुंकारों में आतंकवादियों की राइफलों और मिसाइलों की आवाजें भी दब कर रह गई।

लाल चौक पर तिरंगा न फहरे इसके लिए न केवल कश्मीरी मुस्लिम आतंकवादी बल्कि पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. भी सक्रिय थी। और जिस समय लाल चौक पर तिरंगा फहरा, सबसे अधिक प्रसन्नता हुई सुरक्षाबलों को। जिस समय सरकार इस उहापोह में थी कि डा. जोशी को श्री नगर मेे राष्ट्रध्वज फहराने की इजाजत दी जाए या फिर उस समय सेना और सुरक्षाबलों ने बार-बार आग्रह किया कि लाल चौक पर तिरंगा अवश्य फहरे। सुरक्षाबलों का मानना है कि यदि उस समय किसी भी कारणवश दुर्भाग्य से डा. जोशी लाल चौक नहीं पहुंच पाते और तिरंगा नहीं फहर पाता तो उनके मनोबल को धक्का लगता। ऐसा संभव था कि डा. जोशी लाल चौक न पहुंच पाते, लेकिन यह तो संभव ही नहीं था कि नियत दिन नियत समय पर लाल चौक पर तिरंगा नहीं फहरता। क्योंकि जान हथेली पर लिए देशभक्तों के कई जत्थों ने वेश बदलकर लाल चौक के लिए कूच कर दिया था और उन्हें संकेत भर मिलने की देर थी कि वे लाल चौक क्या शायद घाटी के सभी चौराहों पर तिरंगा फहरा देते। कैसे ? प्रस्तुत है इस सम्बंध में पूरी जानकारी देते हुए यह लेख 'किसी कारण वश यदि भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष डा. मुरलीमनोहर जोशी या उनके सहयोगी २६ जनवरी ९२ को श्रीनगर (कश्मीर) नहीं पहुंच पाते तो उसी दिन प्रातः साढ़े सात से साढ़े ग्यारह बजे के बीच लाल चौक पर तिरंगा अवश्य फहरता।'

यह जानकारी देते हुए राष्ट्राय स्वयंसेवक संघ के जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश के प्रान्त प्रचारक श्री इन्द्रेश कुमार ने बताया कि संघ, भारतीय जनता पार्टी तथा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् और भाजपा युवा मोर्चे ने इस हेतु पूरी तैयारी की हुई थी।

इन संगठनों के करीब छत्तीस कार्यकर्ता नौ समूहों में श्रीनगर के विभिन्न क्षेत्रों से २४ जनवरी से पूर्व ही रवाना हो गए थे, जिनमें एक महिला तथा उसका साढ़े दस वर्षीय पुत्र भी शामिल था। शेष चौदह समूह जो २४ जनवरी की रात और २५ जनवरी की सुबह श्रीनगर के लिए रवाना होने वाले थे, उन्हें रोक दिया गया था क्योंकि २४ जनवरी की रात को संकेत मिल गए थे कि २५ जनवरी की शाम तक डा. जोशी और उनके सभी प्रमुख साथी श्रीनगर पहुंच जाएंगे। ऐसे सभी समूहों में कम से कम तीन और अधिक से अधिक पांच सदस्य रखे गये थे। कुल मिलाकर एक सौ कार्यकर्ताओं को चुना गया। इनमें पचास जम्मू कश्मीर तथा पचास दिल्ली के थे। इनकी आयु करीब २२ वर्ष से लेकर ४५ वर्ष के बीच थी। जो नौ समूह श्रीनगर पहुंचे, उनके पहुंचने की शुरुआत २१ जनवरी से हुई और २४ जनवरी तक चलती रही।

 

अभेद्य योजना

इन सभी समूहों को निर्देश दिए गए थे कि यदि २६ जनवरी की सुबह सात बजे तक उन्हें कोई संदेश न मिले तो वे लाल चौक की तरफ तिरंगा फहराने हेतु बढ़ें। श्रीनगर पहुंचने वाले नौ समूहों में से प्रत्येक तीन समूहों को लाल चौक तक पहुंचने का भित्र-भिन्न समय दिया गया था। पहले तीन समूहों को प्रात: साढ़े सात से आठ बजे के बीच लाल चौक पहुंचाना था दूसरे तीन समूहों को नौ से साढ़े नौ बजे पहुंचने का निर्देश दिया गया था। शेष समूहों को ग्यारह से साढ़े ग्यारह बजे के बीच पहुंचना था।

इनमें से एक समूह जो श्रीनगर स्थित ओबराय होटल में ठहरा था, करीब नौ बजकर पन्द्रह मिनट पर बड़शाह चौक तथा लाल चौक की ओर पहुंचते हुए पकड़ा गया। व्यापारी वेश धारण किए एक एकता यात्री ने सुरक्षाबलों को बताया कि उसका सारा पैसा खत्म हो गया है। वह १५-२० हजार रुपए लाया था। अब कुछ नहीं बचा। इसलिए सुरक्षाबलों ने अनमने मन से उसे हवाई अड्डे जाने की अनुमति दे दी। जब वह लाल चौक पर पहुंचा तो देखा वहां तिरंगा फहर रहा था।भाविहिल ठस एकता यात्री ने वंदेमातरम् व भारत माता की जय के नारे लगाए। सुरक्षाबलों ने पकड़कर उसे हवाई अड्डे पहुंचा दिया। वहां उपस्थित पत्रकारों ने जब उससे बातचीत की तो उसने अपने शरीर में छुपाकर रखा तिरंगा झंडा निकाला और उसे फहराने लगा।

इसी तरह २४ जनवरी को एक समूह के तीन कार्यकर्ताओं को सेना ने स्थानीय गुरुद्वारे से पकड़ लिया। सेना के मेजर ने तीनों की इस संदेह के आधार पर काफी पिटाई की कि वे कहीं आतंकवादी तो नहीं है। जब मेजर को ज्ञात हुआ कि तीनों एकता यात्री हैं तो पूछने लगा कि तुम तिरंगा कैसे फहराते?' तीनों ने अपनी वर्दी दिखाई। और कहा कि हम पुलिस वेश में लाल चौक पहुंचकर झंडा लगाते। मेजर और उनके साथी काफी खुश हुए। बाद में उन्होंने इन तीनों को सुरक्षा घेरे में २६ जनवरी को ध्वजारोहण के समय लाल चौक पहुंचाया।

एक अन्य दल पत्रकार के वेश में श्रीनगर में मौजूद था। २६ जनवरी प्रातः ८.३० बजे वहां तैनात अर्द्धसैनिक बल के एक जवान ने उन्हें कहा ओए पत्रकारों, जोशी जी और अन्य नेता तो लाल चौक पहुंच गए और तुम अभी यहीं बातचीत करने में लगे हो।' इन तीनों कार्यकर्ताओं ने तुरन्त सामान उठाया और लाल चौक भाग पड़े, जहां नेतागण तिरंगा फहराकर लौट रहे थे।

स्टैंडर्ड होटल में केशधारी यात्रियों का एक समूह रुका था। २५ जनवरी को इन्हें संदेश मिला कि इन्हें लाल चौक के लिए रवाना नहीं होना है क्योंकि डा. जोशी एवं अन्य नेता श्रीनगर पहुंच चुके हैं। इन सभी बन्धुओं ने होटल की खिड़की से ही २६ जनवरी का ध्वजारोहण कार्यक्रम देखा। उस होटल में स्थानीय मुसलमानों से उनकी वार्ता हुई। वे कह रहे थे कि हमसे तो आप ही अच्छे हो जिन्होंने पंजाब में एकता यात्रा पर हमला तो किया, हमने (कश्मीरी मुसलमानों) तो कुछ भी नहीं किया।

 

जोखिम भरा काम

सूत्रों के अनुसार कार्यकर्ताओं के इन समूहों को श्रीनगर भेजने से पूर्व काफी तैयारी की गई थी। १६ जनवरी के बीच तक ६ समूह घाटी में दो-दो दिन ठहरकर लाल चौक तक पहुंचने के खुफिया रास्तों की जानकारी ले आए थे। १५ और १६ जनवरी को सभी तैयारियों को अंतिम रूप दे दिया गया। इससे पहले तीन प्रमुख बिन्दुओं पर विचार विमर्श किया गया। एक : श्रीनगर किस रूप में पहुंचा जा सकता है। दो : किस माध्यम से जाया जाए और इसमें प्रशासन की कितनी सहायता मिल सकती है। तीन : घाटी में ठहरने के सम्भावित स्थल क्या और कहां-कहां हो सकते हैं।

ठहरने के लिए गुरुद्वारे, मंदिर, होटल, कश्मीरी पंडितों के तथा देशभक्त मुसलमानों के घर तय किए गए। जाने के लिए वायुयान, टैक्सी, कार, बस, ट्रक, मारुति जिप्सी (सफेद, पीली, नीली, व मिलिट्रीरंग की) का उपयोग करने की योजना बनी। कार्यकर्ताओं को पुलिस, सेना के अलावा व्यापारी, सिख, मुस्लिम, साधु और भजन-कीर्तन करने वाली धार्मिक मण्डली के वेश में भेजा गया। कार्यकर्ताओं के समूह में ५ सिख, २ मुसलमान तथा १२ कश्मीरी पंडित शामिल थे। शेष डोगरा, पंजाबी आदि थे।

दिसम्बर'९१ के पहले सप्ताह में तैयार की गई इस रणनीति में लाल चौक (श्रीनगर) तक पहुंचने के सभी मार्गों का बारीकी से अध्ययन किया गया था। घाटी जाने वाले प्रत्येक समूह को इन सभी मार्गों की सूक्ष्म जानकारी, गन्तव्य से लाल चौक तक हर स्थिति में पहुंचने का समय इत्यादि बता दिया गया था। इसके अलावा स्थानीय प्रशासन और सैन्य बलों का सहयोग मिल ही रहा था।

सूत्रों के अनुसार २४ जनवरी की शाम को जब यह निश्चित संकेत मिल गए कि डा. जोशी और उनके साथी श्रीनगर पहुंच जाएंगे तब श्रीनगर घाटी में रुके कार्यकर्ताओं के इन समूहों को बताया गया कि वे अपने स्थानों से बाहर न निकलें और न ही तिरंगा फहराने का प्रयास करें तथा पहले से निर्धारित मार्गों और साधनों से वापस जम्मू लौटें। इस सारी योजना में जान का जोखिम था, और सभी कार्यकर्ता यह जोखिम उठाकर ही श्रीनगर पहुंचे। परन्तु योजना के सूत्रधारों की पूरी कोशिश थी कि सभी कार्यकर्ता सकुशल वापस पहुंचे। संयोग से यह कोशिश सफल रही।

सूत्रों के अनुसार एकता यात्रा प्रारम्भ होने से एक मास पूर्व ही यह विचार होने लगा था कि सभी बाधाओं के बावजूद एकता यात्रा (विशेषकर डा. जोशी) लाल चौक तक कैसे पहुंचेगी, संभावित बाधाओं में मुख्य रूप से तीन बिन्दु उभरे

(१) यदि सरकार ने यात्रा को रोका तो लाल चौक पर तिरंगा कैसे फहरेगा?

(२) प्राकृतिक बाधा (भूस्खलन, तूफान) आई तो, और

(३) अगर आतंकवादियों ने कहीं कोई गड़बड़ की तो?

 

कश्मीर के शहीद

सर्वानन्द कौल प्रेमी  (64)

अवकाश प्राप्त अध्यापक : निवासी सोफशाली , जिला , अनंतनांग

वीरेन्द्र कौल (27)

पुत्र श्री सर्वानन्द कौल केन्द्रीय कर्मचारी

दोनों की हत्या - 30 अप्रैल 1999

अपराध - देशभक्त

सर्वानन्द कौल प्रेमी एक प्रसिद्ध कश्मीरी कवि और विद्वान थे। यद्यपि उनके परिवार वालों ने कई बार उनसे आग्रह किया कि बढ़ती हुई आतंकवादी गतिविधियों और उनके समाज के लोगों की निरंतर  हत्याओं को देखते हुए उन्हें गांव छोड़ देना चाहिए, परन्तु उन्होंने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि मुझे अपने प्यारे कश्मीरियों को सेकुलर परंपराओं पर पूरा विश्वास है। श्री प्रेमी धार्मिक प्रवृत्ति के और बहुत उदार थे। ये मानते थे कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी उनका बहुत सम्मान है और मुसलमान भी उनका बहुत आदर करते हैं। परन्तु उनका यह विश्वास टूट गया जब २९ अप्रैल, १९९० की शाम तीन आतंकवादियों ने उनके घर में प्रवेश किया और सारे परिवार को एक कमरे में इकट्ठे होने का हुकुम दिया। आतंकवादियों ने यह भी आदेश दिया कि से अपनी सब बहुमूल्य वस्तुएं - सोना, आभूषण, नकदी पश्मीनी पोशाकें, साड़ियां, शालें आदि भी कमरे में इकट्ठी कर लें। जो सोने के आभूषण पुरुषों महिलाओं ने पहने थे उन्हें खींचकर उतार लिया गया। सब कुछ एक खाली सूटकेस में भरने के बाद उन्होंने दुबले-पतले और वृद्ध श्री प्रेमी को हुकुम दिया कि इसे उठाओ और हमारे पीछे-पीछे चलो। 'हम इसका कुछ नहीं बिगाड़ेंगे, यह लौट आएगा।'  आतंकवादियों ने रोते-बिलखते परिवार वालों से कहा था। लेकिन श्री प्रेमी के पुत्र वीरेन्द्र कौल का दिल नहीं माना। उसने पिता के साथ चलने की पेशकश की ताकि बूढ़े पिता को अंधेरी रात में रास्ता दिखाकर साथ वापिस ले आए। आओ, अगर तुम्हारी मर्जी है तो तुम भी साथ चलो।' उन दरिन्दों ने वीरेन्द्र से कहा और दोनों को धकेलकर घर के बाहर ले गए।

बाद में जो कुछ हुआ, वह दिल दहलाने वाला है। दो दिन बाद पिता-पुत्र के शव मिले। दोनों भौहों के बीच मस्तक तक जहां श्री प्रेमी 'तिलक' लगाया करते थे लोहे की सलाख से छेद कर खाल उतारी हुई थी। सारे शरीर पर जलती सिगरेट के दागों के निशान थे। उन्हें बुरी तरह से पीटा गया, बाद में लटकाकर फांसी दे दी गई और गोलियों से भी भून दिया गया।

और यह उस व्यक्ति के साथ हुआ जिसके पूजाघर में कुरान शरीफ की एक दुर्लभ प्रति भी बड़े सम्मान के साथ रखी हुई थी।

कन्याकुमारी से चलकर श्रीनगर पहुंची ५ दिन की एकता यात्रा के दौरान ऐसी कई घटनाएं घटी जिन्हें सुनकर, पढ़कर आज भी भावहिल हो आंखें छलछला आती हैं। यहां प्रस्तुत है ऐसी ही कुछ भावुक झलकियां

२४ जनवरी को लखनपुर से जम्मू के मार्ग पर स्थित एक गांव में सुदर्शन नामक के एक नौजवान, जो कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हुआ था, की याद में गांव के लोगों ने १५००० पूड़ियों के पैकेट तैयार किए तथा एकता यात्रियों को जबर्दस्ती रोक-रोककर दिए।  गांव वाले नारा लगा रहे थे-बंदेमातरम्-जय श्रीराम। गांव में भोजन की व्यवस्था यात्रा के व्यवस्थापकों की ओर से नहीं थी बल्कि स्वयंप्रेरणा से गांववाला ने यह सब किया।

नानक नगर (जम्मू की एक कालोनी ) में नेशनल कांफ्रेंस के एक नेता के पुत्र ने एकता यात्रा के प्रबंधकों से कहा कि रात को ठहरने के लिए हमारे घर भी एकता यात्री भेजो। भाजपा के एक कार्यकर्ता डा. बलवन्त ने कहा कि भई पर में पूछ लो। लड़का कहने लगा कि घर में एक कमरा खाली कर दिया गया है बिस्तर लगा दिए हैं। भाजपा कार्यकर्ता वहां गए और पूछा तो नेशनल कांफ्रेंस के उस नेता ने कहा, 'भई हम भी हिन्दू हैं। हमने तो यह सोचा है कि एक कमरे में हम रहेंगे शेष तीनों कमरों में एकता यात्री।'

जम्मू में शोभा यात्रा के मार्ग में कहीं चने तो कहीं फल, कहीं हलवा, कहीं चाय तो कहीं मिठाई आयोजक हैरान, यह सब कैसे हुआ? पूछा तो रघुनाथ बाजार में एक बन्धु ने कहा कि एकता यात्री साधारण नहीं हैं वे तो देशभक्त हैं। कश्मीर जा रहे हैं जान हथेली पर रखकर। हम इतना भी न करें साहब यह तो बहुत कम है जो हम कर रहे हैं, इनके तो पांव की मिट्टी सिर पर लगानी चाहिए।

एक बात प्रारम्भ में ही तय हो गई थी कि किसी भी हालत में लाल चौक पर तिरंगा फहराना ही है। सारी योजना को सुचारू रूप से मूर्त रूप देने के उद्देश्य से दिल्ली, जम्मू और श्रीनगर में केन्द्र स्थापित कर दिए गए थे। तीन केन्द्रों का टेलीफोन से सीधा सम्पर्क था। २६ जनवरी को लाल चौक पर हो रही प्रत्येक गतिविधि की मिनट दर मिनट जानकारी जम्मू में दूरभाष से पहुंच रही थी। लाल चौक की परिधि में चार दूरभाष स्थापित किए गए थे। इनमें से दो २६ जनवरी को काम नहीं कर रहे थे। शेष से लगातार सम्पर्क बना हुआ था।

 

पाकिस्तानी षड्यंत्र

रा.स्व. संघ, भाजपा आदि संगठनों के लिए यह चुनौती २६ जनवरी आते-आते और गंभीर हो गई थी, क्योंकि १५-१६ जनवरी को सूत्रों से संकेत मिला था कि पाकिस्तान इस प्रयास में है कि किसी भी कीमत पर डा. जोशी की यात्रा लाल चौक तक नहीं पहुंचनी चाहिए। पाकिस्तानी षड्यंत्र यह था कि २५ जनवरी रात से २६ जनवरी तक लाल चौक को घेरो। दूसरा, २६ जनवरी को स्थानीय कश्मीरी लोग अपने घरों से निकलकर तिरंगा अपने पांवों तले रोदेंगे। तीसरे, २५ से.२६ जनवरी को पूरे श्रीनगर में जनता कर्फ्यू (सिविल कर्फ्यू ) लगाने की योजना थी। उधर अमानुल्ला खां ने धमकी दी थी कि यदि लाल चौक पर तिरंगा फहराने की कोशिश की गई तो घाटी में भयंकर रक्तपात होगा।

इस परिप्रेक्ष्य में रा.स्वयंसेवक संघ के सहयोगी संगठनों ने मिलकर आपात् योजना तैयार की थी। स्थानीय प्रशासन, पुलिस तथा सुरक्षाबलों के सक्रिय सहयोग से इन संगठनों की रणनीति सफल रही। संघ, भाजपा व विद्यार्थी परिषद् की इस संयुक्त रणनीति का लोहा सैनिक व अर्द्धसैनिक बलों ने भी माना। एक बार फिर इन संगठनों की संगठनात्मक क्षमता और कार्यपद्धति की सभी क्षेत्रों में प्रशंसा हुई। इसी का परिणाम है कि जहां तिरंगा जलाया जाता था पैरों तले रौंदा जाता था, गणतंत्र दिवस पर वहीं वह फहरा, शान से फहरा। और पूरा दुनिया को बता दिया कि कश्मीर हमारा है, हिन्दू का है, हिन्दुस्थान का है। -

अस्वीकरण:

उपरोक्त लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं और kashmiribhatta.in किसी भी तरह से उपरोक्त लेख में व्यक्त की गई राय के लिए जिम्मेदार नहीं है।  

साभारः   :-   भूषण कौल  एवं 10 अप्रैल 1994 पाञ्चजन्य