सदन में धारा 370 पर बहस ----एक 6 दिसम्बर यह भी था  सन् 1968 का

- सदन में धारा 370 पर बहस ----एक 6 दिसम्बर यह भी था  सन् 1968 का




सदन में धारा 370 पर बहस ----एक 6 दिसम्बर यह भी था  सन् 1968 का

Paanchajany पाञ्चजन्य

जब कश्मीर और हमारे बीच खड़ी दीवार ढहाने की अपील हुई

सदन में धारा 370 पर बहस 

6 दिसम्बर, 1968 को लोकसभा में संविधान की धारा 370 खत्म करने हेतु भाजपा (तत्कालीन जनसंघ) नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जो प्रस्ताव रखा था और सदन में उस पर जो चर्चा हुई उसको ज्यों का त्यों यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।

सं.

श्री अटल बिहारी वाजपेयी : (बलरामपुर ) : अध्यक्ष महोदय, सदन ने मेरे संकल्प में जो अभिरुचि दिखलाई है उसके लिए मैं सदन का आभारी हूँ। मेरे प्रस्ताव में अनुच्छेद ३७० को समाप्त करने की बात एक उदाहरण के रूप में कही गई है। वह मेरे प्रस्ताव की एक- मेव मांग नहीं है। मैं प्रस्ताव का एक अंश पढ़ कर सुनाना चाहूंगा :

4 . इस राज्य को पूर्ण रूप से भारत के अन्य राज्यों के समान लाया जाना चाहिए और इस प्रयोजनार्थ यह सभा सिफारिश करती है कि सभी आवश्यक कार्रवाइयां जैसे कि अनुच्छेद ३७० का निराकरण, तुरन्त आरम्भ की जाएं।' लेकिन सारा विवाद अनुच्छेद ३७० पर केन्द्रित हो गया है। एक दृष्टि से यह अच्छा हुआ है। बार-बार इस बारे में चर्चा करते रहना इस सदन और देश के दिमाग को बनाता है। इस दृष्टि से इस चर्चा का स्वागत होना चाहिए।

इस चर्चा में कुछ भाषण सुनकर मुझे ताज्जुब हुआ है। यह पहला मौका नहीं है जब इस सदन में अनुच्छेद ३७० को समाप्त करने की बात कही गई। मेरे मित्र श्री प्रकाशवीर शास्त्री जी ने सन् '६४ में इस आशय का एक विधेयक प्रस्तुत किया था। मेरा तो केवल संकल्प है जो सिफारिश के रूप में है। उनका विधेयक अगर स्वीकार कर लिया जाता तो वह बन्धन के रूप में होता। उस विधेयक पर मेरे मित्र श्री एस.एम.बैनर्जी जो इस सदन से गायब हैं, ने भाषण दिया था कि अनुच्छेद ३७० समाप्त होना चाहिए। उस पर श्री सरजू पाण्डेय जी ने भी भाषण दिया था। मैं पांडेय जी का भाषण उद्धृत करना चाहता हूं। इसलिए मैं कहना चाहता हूं कि अगर कश्मीर के बारे में आपको कुछ करना है तो आज ठीक प्रस्ताव आया है, आना तो इसको बहुत पहले चाहिए था लेकिन आज ही सही' श्री सरजू पाण्डेय का यह सन् '६४ का भाषण है। मैं श्री बैनर्जी के शब्दों को भी उद्धृत करना चाहता हूं:

इतने साल के बाद भी आर्टिकल ३७० ऐब्रोगेट न होने के बारे में कोई दलील नहीं दी गई इस सदन में।

 

प्रोफेसर मुकर्जी इस समय सदन में नहीं हैं। उनका भाषण सुनने में आनन्द आता है, उनकी वाणी पर सरस्वती बसती है। आज उनका भाषण सुनकर मुझे खेद और आश्चर्य हुआ। ऐसा लगता है कि कम्युनिस्ट पार्टी की नीति में परिवर्तन हुआ है। क्या यह परिवर्तन सोवियत रूस की नीति में परिवर्तन का परिणाम है? अगर यह उस परिवर्तन का परिणाम है तो सदन को और देश को इसके बारे में गम्भीरता से विचार करना होगा।

जो बात सन १९६४ में ठीक थी, वह सन १९६८ में गलत नहीं हो सकती है। अगर सन १९६४ में अनुच्छेद ३७० को समाप्त करना उचित था, आवश्यक था, देश और (जम्मू-कश्मीर के व्यापक हितों में था, तो आज यह नहीं कहा जा सकता कि अनुच्छेद ३७० को समाप्त नहीं किया जाना चाहिए। श्री प्रकाशवीर शास्त्री के विधेयक पर डा. लोहिया ने पक्ष में मत दिया था। और श्री मधु लिमये का मत भी उसके पक्ष में था। यह बात में अपने मित्र श्री एस.एम. जोशी को याद दिला रहा हूं। उन्होंने कहा कि वे मेरे प्रस्ताव की भावना से सहमत हैं, लेकिन राष्ट्रीय एकात्मता का कार्य बड़ा कठिन कार्य है, इसको हमें धीरे-धीरे करना होगा। मेरा निवेदन है कि राष्ट्रीय एकात्मता का कार्य निरन्तर चलने वाला कार्य है। यह लोगों के दिलों और दिमागों को जीतने का कार्य है और मेरा इस संकल्प को लाने का उद्देश्य यही है कि जो अनुच्छेद ३७० जम्मू-कश्मीर की जनता के मन में एक दुविधा पैदा करता है। उसे निष्प्रोजनीय बना दिया जाए। एक ओर तो राज्य की विशेष स्थिति है, दूसरी ओर यह धारा वहां के नागरिकों के साथ भेदभाव करती है। जो लोग लिमिटेड एक्सेशन-भारत में सीमित विलय करने के पक्षपाती है उन्हैं में चेतावनी देना चाहता हूं की जम्मू कश्मीर की जनता सीमित विलय को पसंद नही करेगीं वह सर्वोच्च न्यायालय में जाने का अधिकार नही छोड़ेगी वह चुनावों का निष्पक्ष निर्देशय चाहेगी जो अधिकार भारतीय गणराज्य के हर नागरिक को प्राप्त है ये अधिकार यदि जम्मू कश्मीर के नागरिक को प्राप्त नहीं होंगे तो

वहां की जनता उसके खिलाफ आवाज उठाएगी। मैं बख्शी साहब का अभारी हूं जिन्होंने जिन्होंने मुझे वहां के एक सरकारी कर्मचारी का मामला दिया है, मैं पूछना चाहता हूँ कि कि भारत के किसी अन्य राज्य में यह स्थिति हो सकती है ? कोई कर्मचारी एसोसियेसन का काम करे तो क्या उसको भोटिक दी जाएगी? कोई श्री अब्दुल हमीद अफ्रीदी डिप्टी एक्साइज कमिश्नर है, वह कहते हैं

It has been brought to my notice that you are taking active part in the activities of the low-paid employees federation Accordingly, strict watch over your activities was exercised by the undersigned and I have come to the conclusion that you are much interest in such matters and pay hardly any attention to government work It a also been reported to me by some of your colleagues that they have seen you posting posters of the aforementioned federation on the walls of houses and shops.

 ( यह  मेरी जानकारी में लाया गया है कि आप अल्प वेतन भोगी कर्मचारी संघ की गतिविधियों में अधिक भाग ले रहै । तदनुसार अधोहस्ताक्षरकर्ता ने आपकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी है और मैं इस निश्कर्ष पर पहुंचा हूं कि आप उन मामलों में विशेष रुचि लेके और कदाचित ही सरकारी कार्यों की ओर चस्पी रखते हो। आपके कुछ सहयोगियों ने मुझे यह भी बताया  है कि उन्होंने आपको उक्त संघ के सेक्टरों को मकानों तथा दुकानों की दीवारों पर चिपकाते  देखा है।)

यह जम्मू कश्मीर के कर्मचारियों को संगठन बनाने का अधिकार नहीं है? क्या इसके लिए उनके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी?

Shei Nambiar : They are doing it here for the Central Government employees here. They are like brother and sister. (Interruptions)

 ( श्री नाम्बियार : ये इस काम को यहां केन्द्र सरकार कर्मचारियों के प्रति कर रहे हैं उसी की छलक देखती है भाई - बहन की तरह है) (व्यवधान)।

श्री अटल बिहारी वाजपेयी : अध्यक्ष महोदय, यहां स्थित किसी को पोस्टर सराय है, लेकिन इतनी खराब नहीं है। किसी को पोस्टर  लगाते हुए देख लिया तो उसको नोटिस दी जाए - इसका  गृहमंत्री भी समर्थन नहीं करेंगे। जम्मू - कश्मीर के कर्मचारियों के साथ यह व्यवहार नहीं होना चाहिए। इस तरह की कार्यवाहियां न चलें, इस दृष्टि से कुछ कदम उठाने आवश्यक है और उसके लिए मेरा एक सुझाव था कि अनुच्छेद ३७० समाप्त कर दिया जाए। अपने आदेश द्वारा राष्ट्रपति यह कर सकते हैं। मैं मानता हूं कि राज्य सरकार से पूछकर यह काम होना चाहिए, लेकिन यह सदन अपनी सिफारिश कर सकता है, अपनी राय प्रकट कर सकता है कि अनुच्छेद ३७० जो कि संविधान में एक अन्तर्कालीन उपबन्ध था, अस्थायी था, उसे अब समात करने का समय आ गया है। मुझे खेद है कि गृहमंत्री इस अनुच्छेद को ब्रिज कहकर सारा प्रत्र टालना चाहते हैं। शायद उन्होंने संविधान के निर्माताओं की मंशा नहीं समझी अगर अनुच्छेद ३७० को ब्रिज  समझा जाएगा - कश्मीर और भारत के बीच ....

Shri Y.B. Chavan: I did not say it was a bridge between Kashmir and India. I said, was a bridge for applying more and more articles of the Constitution to Jammu and Kashmir-constitutional bridge.

हम जम्मू-कश्मीर के मामले में पाकिस्तान को एक पक्ष नहीं मान सकते। मेरा निवेदन है कि आज मामला सुरक्षा परिषद् में मौजूद है, पाकिस्तान उसको नए सिरे से कुरेदने की कोशिश कर रहा है, इसलिए यह और भी आवश्यक हो गया है कि वह मनोवैज्ञानिक दीवार जो कश्मीर की जनता और हमको बांटती है वह खत्म कर दी जाए।

 (श्री वाई.बी. चव्हाण : यह मैंने नहीं कहा था कि यह कश्मीर और भारत के बीच में एक सेतु है। मैंने कहा कि यह जम्मू-कश्मीर में ज्यादा से ज्यादा संविधान की धाराएं लागू करने में सहायक सेतु' है-संवैधानिक सेतु।'

 

Shri Atal Bihari Vajpayee: That does not require any bridge.

 (श्री अटल बिहारी वाजपेयी : उसे किसी सेतु की आवश्यकता नहीं है।)

अध्यक्ष महोदय, संविधान के निर्माताओं की मंशा बिल्कुल साफ थी कि अनुच्छेद ३७० कुछ समय के लिए है। नेहरू जी ने कहा था कि यह अनुच्छेद घिसते घिसते घिसजाएगा। क्या इसका अर्थ यह है कि वह बना रह जाएगा? आप कह सकते हैं कि आज उसको पूरी तरह से खत्म करने का समय नहीं है, लेकिन हम ऐसे समय की कल्पना नहीं कर सकते कि अनुच्छेद ३७० जो अस्थायी है, यह स्थायी कर दिया जाएगा.

Shri Y.B. Chavan: Nobody has taken that position

 (श्री वाई.बी.चव्हाण: किसी ने भी ऐसी स्थिति नहीं ली है।

श्री अटल बिहारी वाजपेयी : लेना भी नहीं चाहिए। अब कहा जाता है कि परिस्थिति यही बनी है जो संविधान के निर्माण के समय थी। जम्मू-कश्मीर के एक-तिहाई भाग पर पाकिस्तान का कब्जा है।

कश्मीर का मामला सुरक्षा परिषद् में पेश है। जब तक यह परिस्थिति नहीं बदलती है तब तक अगर हम यह अनुच्छेद ३७० हटाएंगे तो पाकिस्तान शोर मचाएगा। मेरा कहना है कि क्या पाकिस्तान के लिए हमने यह अनुच्छेद ३७० रखा हुआ है? वह तो जब भी आप कोई नया कानून वहां पर लागू करते हैं तो शोर मचाता है। पाकिस्तान तो शोर मचाने वाला ही है। लेकिन अगर भारत की राष्ट्रीय एकात्मता का कारवां पाकिस्तान के शोर मचाने से रुक जाएगा तो यह देश के लिए बड़े दुर्भाग्य का दिन होगा। हम जम्मू-कश्मीर के मामले में पाकिस्तान को एक पक्ष नहीं मान सकते। मेरा निवेदन है कि आज मामला सुरक्षा परिषद् में मौजूद है, पाकिस्तान उसको नए सिरे से कुरेदने की कोशिश कर रहा है, इसलिए यह और भी आवश्यक हो गया है कि वह मनोवैज्ञानिक दीवार जो कश्मीर की जनता और हमको बांटती है यह खत्म कर दी जाए। अगर कश्मीर का मामला सुरक्षा परिषद् में न होता, अगर पाकिस्तान उस मामले को बार-बार उठाने की कोशिश न करता और अगर कुछ अन्तरराष्ट्रीय शक्तियां इस मामले में पाकिस्तान की पीठ थपथपाने की अथुद्धिमता नहीं दिखाती तो शायद यह मांग करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। मामला सुरक्षा परिषद् में है और पाकिस्तान गड़बड़ करता है इसलिए एक अनिश्चितता की स्थिति पैदा होती है। उस स्थिति का निराकरण करने के लिए हम अनुच्छेद ३७० को समाप्त करने का कदम उठा सकते हैं।

 

मैं एक बात कहकर खत्म कर दूंगा। कश्मीर में अब राजतंत्र नहीं है। कश्मीर के महाराजा जनता के मतों से निर्वाचित होकर भारतीय गणराज्य की सेवा के लिए इस सदन में मौजूद हैं। कोई कश्मीर में फिर से राजतंत्र लाना नहीं चाहता। कश्मीर में जमींदारी खत्म कर दी गई कोई फिर से जमींदारी कायम करना नहीं चाहता। जहां तक जमीन लेने का सवाल है जमीन लेने पर प्रतिबन्ध  लगाए जा सकते हैं। अब वे प्रतिबन्ध उचित होंगे या नहीं होंगे यह सवाल अलग है। लेकिन उसके लिए अनुच्छेद ३७० की जरूरत नहीं है। ऊर्वशीयम (पूर्वाञ्चल-सं.) में जमीन नहीं खरीद सकते। छोटा नागपुर में आदिवासियों की जमीन खरीदने पर रोक लगी है। लेकिन जो काम एक डिप्टी कमिश्रर कर सकता है उसके लिए भारतीय संविधान को विकृत करने की आवश्यकता नहीं है - हम नहीं चाहते बहुत बड़ी संख्या में लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने के लिए जाएं, लेकिन अगर जमीन खरीदने का डर हो तो उसका प्रबन्ध किया जा सकता है। उसके आधार पर अनुच्छेद ३७० को बनाए रखने का समर्थन नहीं होना चाहिए।

अध्यक्ष महोदय, एक युनियादी बात है कि कश्मीर को जनता अपनी इच्छा से हमारे साथ मिली है। मैं उन शेख अब्दुल का अभिनन्दन करने के लिए तैयार हैं जो शेख अब्दुल कायदे आजम जिन्ना के दो राष्ट्रों के सिद्धान्त के खिलाफ खड़े हुए थे लेकिन कभी-कभी मुझे लगता है कि अब वह जम्मू-कश्मीर में तीन राष्ट्रं के सिद्धान्त का प्रतिपादन कर रहे हैं। वह दो राष्ट्रों के सिद्धान्त से तो लड़े लेकिन आज वह कश्मीर को एक अलग राष्ट्र बता रहे हैं। मेरा कहना है कि कश्मीर अलग राष्ट्र नहीं हो सकता है। क्या आप जानते हैं कि जहां तक जमीन लेने का सवाल है जम्मू के लोगों को भी कश्मीर की घाटी में जमीन नहीं लेने दी जाती है? मेरे पास एक नाम है डा.पे.आर. सेठी का, यह डी जे आर सेठी नेत्र विशेषज्ञ हैं।यह कश्मीर में मकान बनाकर रहना चाहते थे। उन्होंने उसके लिए जमीन मांगी लेकिन वह नहीं दी गई। उन्हें जम्मू में जमीन दी गई

The Deputy Minister in the Ministry of Commerce (Shri Mohd. Shaffi Qureshi): This is wrong

 (वाणिज्य मंत्रालय में रक्षा मंत्री श्री मोहम्मद शफी कुरैशी : यह गलत है।)

श्री गुलाम मुहम्मद बख्शी : वाजपेयी जी यह गलत बात है।

श्री अटल बिहारी वाजपेयी : यह सच बात है। इसके अलावा मैं सदन को यह भी बतलाना चाहूंगा कि पश्चिमी पंजाब के २० हजार शरणार्थी सन् १९४७ में जम्मू में प्रविष्ट हुए थे। ध्यान दीजिए कि पश्चिमी पाकिस्तान से २० हजार शरणार्थी जम्मू में आए और वह वहां पर बस गए मगर आज उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं है। अपने देश में अपने आदमियों को राज्य विहीन बना दिया गया है। भारत के नागरिक जो पाकिस्तान से निकाले गए, जो जम्मू में आज बसे हुए हैं वे चुनाव में वोट नहीं दे सकते हैं। आप अगर इस स्थिति का समर्थन करना चाहते हैं तो यह हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।

जब पाकिस्तान ने मुजफ्फराबाद पर कब्जा किया तो २० हजार हिन्दू, जिनमें सिख भी शामिल थे, अपने घरों को छोड़ने के लिए विवश हुए। मुजफ्फराबाद से लोग श्रीनगर आए मगर उन्हें श्रीनगर में बसने नहीं दिया गया और उनको जम्मू में धकेल दिया गया। साम्प्रदायिकता की मांग हम नहीं कर रहे हैं। साम्प्रदायिकता का आचरण जम्मू-कश्मीर में हो रहा है। जो हमारे अधिकारी जम्मू कश्मीर में जाते हैं और गृहमंत्री जी जिनकी नियुक्ति करते हैं, वे वहां वोट नहीं दे सकते हैं। वहां के

भारत में रहकर जो पाकिस्तान का गुणगान करते हैं और जो भारत के किसी भाग को पाकिस्तान में लेजाना चाहते हैं उनको बर्दाश्त नहीं किया जा सकेगा और अगर जरूरत महसूस होगी तो उनसे फौज और पुलिस के जरिये भी निबटना पड़ेगा।

मतदाताओं की सूची में उनका नाम नहीं आ सकता है। यह स्थिति कब तक चलेगी? सवाल जमीन खरीरदने का नहीं है, सवाल तो विषमता की दीवारों को ढहाने का है। मनों में जो रुकावटें पैदा की गई हैं उनको खत्म करने का है। मैं मानता हूं कि यह काम केवल कानून से नहीं हो सकता है लेकिन कभी कानून की मुहर लगाने की जरूरत तो पड़ेगी...

 

श्री अब्दुल गनी डार : फौज और पुलिस से राज्य नहीं चलेगा।

श्री अटल बिहारी वाजपेयी : कोई फौज और पुलिस से राज्य करना नहीं चाहता लेकिन भारत में रहकर जो पाकिस्तान का गुणगान करते हैं और जो भारत के किसी भाग को पाकिस्तान में ले जाना चाहते हैं उनको बर्दाश्त नहीं किया जा सकेगा और अगर जरूरत महसूस होगी तो उनसे फौज और पुलिस के जरिये भी निपटना पड़ेगा। आखिर हम फौज और पुलिस रखते किसलिए हैं? अध्यक्ष महोदय, मेरा इस प्रस्ताव को लाने का एक ही उद्देश्य था कि सदन का दिमाग बने, इस देश का दिमाग बने, जम्मू-कश्मीर की समस्याएं इस सदन के सामने आएं। गृह मंत्री जी बड़े चतुर हैं उन्होंने कई प्रश्न बड़े चातुर्य से टाल दिए हैं। जम्मू-कश्मीर की जनता एक स्वच्छ, ईमानदार और मजबूत शासन चाहती है हमने पहले शेख अब्दुल्ल को प्रतिष्ठा दी, आज शेख अब्दुल्य उस स्थान पर नहीं हैं। उनके बाद बख्शी गुलाम मोहम्मद आए और आज अब वह हमारे इस सदन के सदस्य हैं। बख्शी साहब के बाद अब जम्मू-कश्मीर में सादिक साहब मुख्यमंत्री हैं। मेरा कहना है कि यह उठापटक क्यों हो रही है? एक आता है, दूसरा जाता है, यह गड़बड़ आखिर वहां पर क्यों हो रही है?

श्री यशवन्त राव चव्हाण : सभी जगह हो रही है।

श्री अटल बिहारी वाजपेयी : फर्क है। यह फर्क हमें समझना चाहिए कि यह सभी जगह हो रही है मगर सब जगह मुख्यमंत्री बदलते हैं तो अन्तरराष्ट्रीय प्रश्न नहीं बनता है। सब जगह मुख्यमंत्री बनते हैं तो पाकिस्तान को भारत को बदनाम करने का हथियार नहीं मिलता है। और जगह मुख्यमंत्री बदलते हैं तो लोगों के दिमाग में अस्थिरता पैदा नहीं होती है। इसलिए नई दिल्ली को इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा और जम्मू कश्मीर की स्थिति को स्थिर करने के लिए, जो लोग भारत के साथ अपना भाग्य जोड़ चुके हैं उनको पूरी तरह से संतुष्ट करने के लिए और लोकतंत्रीय भारत में वह सम्मान और बराबरी के साथ अपना जीवन बिता सकें, एक ईमानदार और अच्छा प्रशासन पा सकें इसके लिए कुछ करना चाहिए।

अस्वीकरण:

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साभारः      10 अप्रैल 1994 पाञ्चजन्य