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चैत्र कृष्ण पक्ष, शुक्रवार, चर्तुथी

ओंकार नाथ गंजू

पीर पण्डित बादशाह ऋषिपीर

ओंकार नाथ गंजू

उसने अपनी बहू को नहलाकर और श्रृंगार करके पीर पण्डित के कमरे में उसकी इच्छानुसार भेजा। बहू द्वार पर पहुचते ही चकित रह गई। जब उसने कमरे के अंदर देखा आग सी लगी हुई हैं और वह उस आग से चमक रहे हैं। कमरे के अंदर अलग भयानक दृश्य देखे। पीर पण्डित के शरीर के टुकड़े इधर-उधर बिखरे पड़े थे। इस भयानक दृश्य को देखकर उसका दिल बैठ गया। पीर पण्डित पत्नी के हालात से बेखबर नहीं थे। उनकी दृष्टि इस समय अपनी धर्मपत्नी पर पड़ी थी जिससे उसकी आशा पूर्ण हो गई। इसी तरह रात बीत गई लेकिन वह भयानक राज किसी पर प्रकट न कर सकी। वह आश्चर्यचकित थी कि हे प्रभु! यह क्या बात थी जो रातभर मैंने ऐसा दृश्य देखा । इसी अवस्था में पीर पण्डित भी खड़ाऊँ धारण कर अपने कमरे से बाहर आये। मा ने उनसे पूछा- बेटा तुम्हारे कमरे में आज रातभर कौन था? बेटे ने कहा- धर्मपत्नी के अलावा मेरे कमरे में कोई नहीं था। इस प्रकार नौ मास का समय बीत गया और एक सुन्दर शिशु का जन्म हुआ। नाम रहानन्द रखा गया। परम्परा के अनुसार उसका नामकरण संस्कार भी हुआ परन्तु दुर्भाग्यवश यह मातृवात्सल्य से शीघ्र ही वंचित रहा मा स्वर्ग को सिधारी। यह बच्चा दाछी गाव में एक मुसलमान के घर में पलने के लिये भेजा गया। वहां वह अठारह वर्ष पलता रहा।

पीर पण्डित ने अपने जीवन काल में अनेक आश्चर्यजनक चमत्कार किये हैं। उनके चन्द चमत्कारों का वर्णन इस प्रकार है-

भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी को प्रतिवर्ष हरमुकए मेला गंगवल में लगता था। इस दिन कश्मीरी पंडित वहा स्नान करने और अपने पितरों का श्राद्ध करते थे। पीर पण्डित की माता को भी वहा जाने की इच्छा हुई। उसने बेटे से इस बारे में कहा पीर पण्डित ने वार्द्धक्य का हवाला देते हुए मां से यह यात्रा करने की अनुमति न दी। पीर ने कहा- मैं गंगा जी को ही आपके पास पहुंचा दूंगा तुम घर बैठे ही गंगास्नान करके अपने मन की साध पूरी कर सकती हो। मा को विश्वास नहीं हुआ। पीर पण्डित अपने ज्ञान से ताड़ गये। मा से कहा कि हमारा पुरोहित गंगा जी जा रहा है तुम उसके द्वारा कोई वस्तु व हा भेज दो जिसे वह साथ लेकर गंगा जी में डाल देगा वह निशान सीधे इस स्थान पर गंगा जी के साथ प्रकट होगा। तुम्हारे मन का सन्देह दूर हो जाएगा और आपके मन को शान्ति मिल जाएगी। मा ने वैसा ही किया। पुरोहित जी को कंगन दिया। पुरोहित जी ने वैसा ही किया जैसा उसे बताया गया था।

गंगाष्टमी के दिन प्रभात वेला में गंगा जी बटयार के घाट पर पहुची। पीर पण्डित ने मा से कहा- उठो गंगा जी यहा स्वयं आई हैं, इसमें स्नान करो मा घाट पर पहुची ज्योंही वह पानी में उतरीं त्योंही कंगन जो उसने पुरोहित के हाथ भेजा था, अपने आप ही उनकी कलाई में आ गया। बटयार, जहाँ नदी के किनारे पर एक शिव मंदिर है उन दिनों एक पवित्र तीर्थस्थान माना जाता था बाद में इतर संप्रदाय के स्थानीय लोगों ने उसकी शुचिता को अपवित्र कर दिया। इस घटना के कुछ समय पश्चात पीर पण्डित की माता परलोक सिधारी । पीर पण्डित को माता के विरह से बहुत आघात पहुचा। वे सारे कष्ट याद आए जो उनकी माता ने उनके लालन-पालन में उठाए थे। इसलिए उसके फलस्वरूप पीर पण्डित ने अपने चौदह की तपस्या का जो फल प्राप्त किया था उनके नाम अर्पित किया। दसवें दिन उनके गुरु श्रीकृष्ण कार भी शोक संवेदना प्रकट करने उनके घर आए। गुरु ने पीर पण्डित से कहा-तुमने चौदह वर्ष की तपस्या का फल अपनी मा को अर्पित किया है, इसलिए अब तुमको पुनः चौदह वर्ष तपस्या करनी पडेगी। गुरु के आदेश पर पीर पण्डित पुन तपस्या में लीन हो गए। चौदह वर्ष इतनी घोर तपस्या की कि उनका शरीर कृषिकाय हो गया और चलना-फिरना दूभर हो गया। चौदह वर्ष समाप्त होने पर गुरू श्रीकृष्ण कार इन्हें नए वस्त्र पहनाकर सिहासन पर बिठाया और आप ऋषिपीर पण्डित बादशाह के नाम से प्रसिद्ध हो गए। उस दिन से जनता आपको नजराना (भेंट) अर्पण करते रहे जो साढ़े चौदह (14%) पैसों (पौछू) के बराबर था।

यहां एक दूसरे के चमत्कार का वर्णन इस प्रकार है-पीर पण्डित को अपने बेटे का यज्ञोपवीत संस्कार करने का विचार आया। उसने अपने शिष्य नानशाह को दाछी गाव रहानन्द को घर लाने को भेजा। नानशाह रहानन्द को लाये और यज्ञोपवीत की तैयारिया शुरू हो गई, पर ब्राह्मणों ने इस संस्कार को करने से इकार कर दिया और कहा कि लड़का अठारह वर्ष तक मुसलमान के घर पला-पोसा, उसका यज्ञोपवीत संस्कार कैसे हो सकता है।

इस पर पीर पण्डित से नानशाह को आज्ञा दी कि रहानन्द को मेरे सामने लाओ और उसकी पीठ पर तीन बार लठ मारो दो बार लठ मारने से रहानन्द की हड्डियों से मास अलग हो गया। तीसरी बार दो लाठिया मारने से हड्डिया भिन्न भिन्न हो गई। तत्पश्चात पीर पण्डित ने आज्ञा दी कि यह हड्डिया ओहि नदी में डाल दो, साथ ही नदी के किनारे नए कपड़े रख दो। फिर पीर पण्डित ने रहानन्द को पुकारा और रहानन्द नए कपडे और खड़ाऊँ धारण किये हुये पिता के सामने प्रकट हुए। पिता का पादस्पर्श कर प्रणाम किया। पिता ने माथा चूमा जिससे उसका रूप प्रज्ज्वलित हुआ। फिर ब्राह्मणों से पूछा हे श्रीमान ब्राह्मण क्या रहानन्द संस्कार योग्य है? यह सुनकर ब्राह्मण लज्जित हुए। इस प्रकार रहानन्द का यज्ञोपवीत सस्कार सम्पन्न हुआ।

पीर पण्डित का जीवन चमत्कारपूर्ण है, जिनका वर्णन एक साथ संभव नहीं है। पीर पण्डित की दयादृष्टि हम पर बनी रहे। कहते हैं कि एक निर्धन कश्मीरी पण्डित अपनी पुत्री का विवाह करने में असमर्थ था। बहुत परेशान था कि बेटी का विवाह कैसे करू। अंततः वह पीर पण्डित के पास गया और उनको अपनी व्यथा सुनाई। पीर पण्डित उसकी दशा समझ गए और कहा- तुम्हारे दुखों के अत का एक ही उपाय है कि तुम अपनी कन्या का विवाह मेरे बेटे के साथ करो तुम लेनदेन तथा अन्य रस्मो-रिवाज से मुक्त हो जाओगे। निर्धन पण्डित अति प्रसन्न हुआ और गर्व के साथ सम्बन्धः मान गया। विवाह की तैयारिया शुरू हो गई। पीर पण्डित बरात लेकर पहुंच गए। बरात में 1450- शिष्यों के अतिरिक्त कई सौ बराती भी थे। कन्या वाले घबरा गए। पीर पण्डित भाप गए। उन्होंने कन्या के पिता को बुलाकर कहा- घबराओ नहीं। अतिथियों के सामने चादरें बिछाकर खाना परोसते जाओ बरातियों ने पेट भर खाना खाया, फिर भी दोधियों में बहुत कुछ बचा पीर पण्डित दूल्हा- दुल्हन लेकर चले गए। पर लड़की वालों ने पीर की सेवा में कोई नजराना भेंट न किया इससे पीर का मन बहुत दुखी हुआ। वह अपना सिंहासन लेकर ईदगाह चले गए। तत्पश्चात आलीकदल में भयंकर आग लग गई और कहते हैं कि इस आग से 12040 मकान जलकर राख के ढेर हो गए। यह आग जामा मस्जिद तक फैल गई। लोगों ने पीर पण्डित से बहुत मिन्नतें की और दया के लिए चिल्लाते रहे। पीर पण्डित ने उत्तर दिया- मैंने कागडा से ज्वाला भगवती को निमंत्रण दे दिया है वह अतिथि बनकर आई हैं। अतिथि को इस तरह निकालना शिष्टाचार के विरुद्ध है। इसलिए में उनको एकदम लौटने के लिए नहीं कह सकता हूँ। शिष्यों के बहुत विनय-प्रनय करने पर उन्होंने नानशाह को आशा दी कि मेरी एक खड़ाऊँ को आग में फेंक दो इस प्रकार अग्नि शात होकर बुझ गई। यही कारण है कि वहां पीर पण्डित के स्थापन में एक ही खड़ाऊँ आजकल उनका प्रतीक है जो 1990 के नरसंहार के बाद जम्मू में स्थापित किया गया। जिसके दर्शनों को लिये भक्तजन आते रहते हैं।

पीर पण्डित के समय कश्मीर में व्यापार उन्नति पर था। कश्मीरी व्यापारी दूर-दूर देशों के साथ व्यापार करते थे। एक कश्मीरी व्यापारी समुद्री यात्रा कर रहा था। तूफान आने से उसका जहाज जिसमें उसका माल था तूफान में लडखडाता रहा जहाज डूबने को तैयार था व्यापारी ने मन ही मन में पीर पण्डित का स्मरण किया और प्रतिज्ञा की कि मैं पैदल चलकर स्वयं श्रीमान के चरणों में उपस्थित हो जाऊँगा, नियाज-नज़राना भेंट चढ़ाऊँगा। प्रतिज्ञा की देरी थी कि जहाज डूबने से बच गया। श्रीनगर पहुंचकर व्यापारी अपनी प्रतिज्ञा भूल गया।

एक दिन अचानक पीर पण्डित ने उसे राह पर देखा और बुलाकर कहा देखो मेरे कन्धे पर यह निशान जहाज को कंधा देने से पड़ा है, आप अपनी प्रतिज्ञा भूल गए। व्यापारी बहुत लज्जित हुआ और अगले दिन नजराना भेंट करके प्रतिज्ञा पूर्ण कर ली और पीर पण्डित के शाप से बेच गया।

एक बार एक मुस्लिम धनाढ्य घराने की बेटी ने पीर पण्डित के पास जाकर उनसे पुत्र होने की इच्छा प्रकट की। लड़की के पिता का नाम जहूर-उद-दीन था जो एक मशहूर व्यापारी था। पीर पण्डित लड़की के व्यवहार से अति प्रसन्न हुए। और कहा- तुम्हारी संतान अवश्य होगी यदि तुम अपने सारे जेवरात जेहलम नदी में फेंकने के लिए तैयार हो। खाली गोद की दुखी मा ने वैसा ही किया। एक सुंदर बालक का जन्म हुआ पर वह एक आँख से काना था। मां यह देखकर अति दुखित हुई। उसने पीर पण्डित के पास जाकर अपना दुखड़ा रोया पीर ने कहा इसमें मेरा कोई दोष नहीं है। इसके लिए तुम स्वयं दोषी हो तुमने एक मूल्यवान गहना छुपाकर रखा है जो उसको नदी में फेंक दो तो दोनों आँखों में रोशनी आ जाएगी। लड़की ने वैसा ही किया लड़के की आंखों में रोशनी आ गई।

एक बार पीर पण्डित पालकी में बैठकर बहोरी कदल से कहीं जा रहे थे। वहां कुछ गुडों को शरारत सूझी उन्होंने उनको नजराने के तौर पर अफीम के दो-तीन गोले भेंट किए। पीर पण्डित ने उनको सहर्ष स्वीकार किया। एक भक्त ने उनको दूध पिलाया। रात को बोहरी कदल आग लग गई। केवल उसका मकान बच गया, जिसने उनको दूध पिलाया था।

एक बार कश्मीर के गवर्नर का हाथी आपे से बाहर होकर मस्ती में बेकाबू हो गया और लोगों के मकान गिराने लगा। सारे इलाके में हाहाकार मच गया गया। पीर पण्डित उस समय अपने शिष्यों के साथ भ्रमण को निकले थे। हाथी को अपनी ओर आता देखकर कहारों ने पालकी बीच रास्ते में छोड़ दी और इधर-उधर भाग गए। सड़क पर कोई नजर नहीं आ रहा था। हाथी पीर पण्डित के पास आकर ठहरा और उनके सामने नतमस्तक हुआ। पीर ने उसकी सूँड पर अपना हाथ फेरा और तब शांत होकर महावत उसको पकड़कर ले चला। यह सूचना पाते ही गवर्नर अगले दिन राजकीय नजराना लेकर स्वयं पीर पण्डित के सामने उपस्थित हुए और नजराना भेंट किया।

पीर पण्डित के समय कश्मीर में मल आखून शाह रहते थे। कहते हैं कि उनमें कोई जादुई शक्ति थी। इसी शक्ति से वह लाहौर की एक सुन्दर लड़की को हर शाम अपने पास लाया करता था और सुबह फिर वह अपने घर में पाई जाती थी। यह समाचार लाहौर में फैल गया और लोग तरह-तरह की बातें करने लगे। यहां तक कि यह वापस लौट गए। बात औरंगजेब के कानों तक भी पहुची। लड़की से जब पूछा गया तो वह अज्ञानी बनी। केवल इतना कहा कि मुझे पहाड़ों के ऊपर किसी अज्ञात स्थान पर ले जाया जाता है। उस पर दबाव डाला गया कि वह उसकी कोई वस्तु अपने साथ लाए जहां हर शाम उसको पहुचाया जाता है ताकि निशानी से उस जगह का पता चल सके। लड़की ने जैसा ही किया और पता चला कि लडकी कश्मीर पहुचाई जाती है। गवर्नर कश्मीर को खत लिखा गया कि वह इस बात का पता लगाए लोगों ने मल आखून का नाम बताया। मल आखून के शिष्यों ने गवर्नर को यह मानने पर जोर डाला कि मल आखून में इतनी शक्ति नहीं है। यदि कोई ऐसा काम कर सकता है तो वह पीर पण्डित ही है। यह समाचार सम्राट औरंगजेब तक पहुंचाया गया। वहां से आज्ञा आई कि पीर पण्डित को शिष्यों समेत दिल्ली भेज दिया जाए। सन्देश वाहक पीर पण्डित के पास पहुंचा और उसे बादशाह का संदेश दिया। अगले दिन जाना निश्चित हुआ। रात को ही पीर पण्डित शेर पर सवार होकर औरंगजेब के कमरे में प्रवेश कर गये। शेर को देखकर सम्राट के होश उड़ गये और हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि पहले शेर को बाहर रखें फिर जो आपकी आज्ञा होगी उसका पालन करूँगा। फिर पीर पण्डित ने कहा- क्यों दूत भेजकर मुझे तंग कर रहे हो? इस पर सम्राट क्षमा मांगने लगा और लिखकर दिया- पीर पण्डित को दरबार में उपस्थित होने की आज्ञा रद्द की जाती है और आगे ऐसी कोई हरकत न करने की प्रतिज्ञा की गवर्नर कश्मीर को आज्ञा भेज दी कि वह स्वयं नजराना भेंट करें और उनके नाम जागीर रखी जाए। अगले दिन यात्रा की तैयारी करने लगे और पीर पण्डित ने शाही आज्ञा दिखाई और दूत अपना मुह लेकर वापस लौट गए।

पीर पण्डित के समय में आध्यात्मवाद का वातावरण था। इनके सत्संग ईदगाह में हुआ करते थे। ऐसे ही एक उत्सग में मल आखून शाह नाम के एक दरवेश आए थे। दोनों के बीच अध्यात्मवाद पर वाद-विवाद चलता रहा। मल आखून ने पीर पण्डित से प्रभावशाली बातें सुनकर प्रश्न किया। महाराज। फिर आपको मत-मतान्तरों में भिन्नता मानना शोभा नहीं देता है। पीर पण्डित ने कहा-हम ऐसा सोचते भी नहीं हैं। मल आखून ने पीर को निमंत्रण दिया। पीर पण्डित ने सहर्ष स्वीकार किया पर शर्त यह रखी कि उनके आने से पहले कोई एक दाना भी न चरखे। निश्चित दिन पर पीर पण्डित अपने सारे शिष्यों के साथ उपस्थित हुए। चादरें बिछाई गई चादरों पर ढक्कन लगाई थालिया कश्मीरी में बामिया परोसी गई प्रार्थना की गई और खाना आरम्भ करने से पहले पीर पण्डित ने आज्ञा दी थालियों से ढक्कन उठाए जाए। ज्योंही ढक्कन उठाए गए ढक्कनों के नीचे चावल के बदले शाली के पौधे और उन पर पख उड़ाते हुए मुर्गे और चलते-फिरते भेंड़। एक मुर्गे की टाग नहीं थी। पीर पण्डित ने मल आखून शाह को बुलाया और कहा. देखिए आपने मेरी शर्त पूरी नहीं की। इस त्याग दिए । मुर्गे की एक टांग किसी ने खाई है। पूछताछ करने पर पता चला कि रसोइया ने इसकी एक टांग खाई थी। मल आखून शाह बहुत लज्जित हुए और पीर पण्डित की आध्यात्मिक शक्ति के सामने नतमस्तक हो गए और पीर पण्डित को महान बादशाह मान गए। अतिथियों से क्षमा मागकर विदा किया।

कहते हैं कि पीर पण्डित के शिष्यों में सर्वोत्तम शिष्य नानशाह था जब उसकी माता का निधन हुआ। यह समाचार सुनकर पीर पण्डित भी वहां शोक संवेदना प्रकट करने के लिये आए। नानशाह रोते-पीटते उनके चरणों में पड़े और अपनी मृत माता को पुनः जीवित करने के लिये प्रार्थना की। पीर पण्डित ने बहुतेरा समझाया कि संसार नाशवान है। प्रत्येक प्राणी को यहा से जाना है। पर नानशाह ने एक न मानी। बहुत प्रलाप करने पर पीर पण्डित ने पूछा क्या तुम अपनी आयु का कुछ हिस्सा देने को तैयार हो? नानशाह ने कहा- महाराज। मैं 14 वर्ष देने को तैयार हूँ। जाओ 14 सिघाड़े माँ के सिरहाने तोडकर उनकी गिरिया स्वयं खाओ। तुम्हारी माँ पुन जीवित होगी। नानशाह ने वैसा ही किया और माँ जीवित हो गई।

कहते हैं कि पीर पण्डित के समय में जनान जोय नाम का एक गुप्त महात्मा रैणावाणी में किसी गृहस्थी पंडित के घर रहता था। वह एक पहुचा हुआ योगी था और गुप्त रूप से साधना करता था। जिनके घर में वह रहता था उनके सारे घरेलू कार्य झाडू-पोंछा करना पानी भरना बर्तन धोना आदि करता था। किसी को पता नहीं था।

पीर पण्डित को जब इसका पता चला तो वे उसके दर्शनों के लिये स्वयं रैणावारी पहुचे। जब जनान जोय को इसका पता चला वह समझ गया कि उनके आने से उसका रहस्य खुल जाएगा। अतः उनके आने से पहले ही अपने प्राण त्याग दिए।

पीर पण्डित के चमत्कार संक्षेप में अभूतपूर्व व अलौकिक थे। इसी प्रकार उसकी अंतिम घडी भी आश्चर्यजनक परिस्थितियों में घटित हुई। अब उनकी अंतिम घड़ी समीप आने लगी तो उनके शिष्य बहुत दुखी होने लगे, उनके चेहरों पर उदासी छा गई। पीर पण्डित ने उन्हें समझाया कि जो जन्मता है उसकी मृत्यु अवश्यम्भावी है. इस पर पछतावा करना व्यर्थ है। शिष्यों ने फिर प्रार्थना की कि आप दोनों वर्गों को समान दृष्टि से देखते थे कोई भेदभाव नहीं रखते थे। इसलिए आपके देहत्याग के पश्चात दोनों समुदायों में वाद-विवाद खड़ा हो जाएगा। हिन्दू दाह संस्कार और मुस्लिम दफन करने पर हंगामा कर देंगे। ऐसे में आपके पार्थिव शरीर का क्या किया जाए?

पीर पण्डित ने उत्तर दिया कि शरीर को अग्नि देवता के भेंट किया जाए नानशाह को कहा चंद कोडिया जैना कदल में फेंक दो और ऊँचे स्वर में चिल्लाओ-गय हो गय हो। मगर किसी ने यह नहीं पूछा- क्या गया। लोग पुल की तरफ दौड़ने लगे उसी समय पीर पण्डित भी आत्मा वैशाख कृष्ण पक्ष षष्ठी, उसी दिन उनका जन्मदिन था. 1754 को शरीर को त्यागकर परमपिता परमात्मा में विलीन हो गये। चूँकि लोग जैना कदल की तरफ भाग रहे थे शिष्यों ने समय का लाभ उठाते हुए पीर पण्डित के पुण्य शरीर को बटयार घाट पर उनका दाह संस्कार किया जिस स्थान पर आज मंदिर खड़ा है। उस समय उनकी आयु 60 वर्ष की थी।

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साभार:- ओंकार नाथ गंजू एंव जून 2023 कॉशुर समाचार

 

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