Ekdant Namaashtakam Satrotram एकदन्त नामाष्टक स्तोत्रम्

Ekdant Namaashtakam Satrotram एकदन्त नामाष्टक स्तोत्रम्

ज्ञानार्थवाचको गंश्च गणश्च निर्वाणवाचकः।

तयोरीशं परं ब्रह्म गणेशं प्रणमाम्यहम्।।

एक शब्द : प्रधानार्थो दन्तश्च बलवाचकः।

बलं प्रधानं सर्वस्मादेकदन्तं नमाम्यहम्॥

दीनार्थवाचको हेश्च रम्बः पालकवाचकः।।

दीनानां परिपालक हेरम्बं प्रणमाम्यहम्।।

विपत्ति वाचको विघ्नो नायकः खण्डनार्थकः।

विपत्खण्डन कारकं नमामि विघ्ननायकम्।।

विष्णुदत्तैश्च नैवेद्यैर्यस्य लम्बोदरं पुरा।

पित्रा दत्तैश्च विविधैर्वन्दे लम्बोदरं च तम्।।

शूर्पाकारौ च यत्कर्णी विघ्नवारणकारणौ।

सम्पदौ ज्ञान रूपौ च शूर्प कर्णं नमाम्यहम्।।

विष्णु प्रसाद पुष्पं च यन्मुधिंन मुनिदत्तकम्।

तद् गजेन्द्रवक्त्र युक्तं गजवक्त्रं नमाम्यहम।।

गुहस्याग्रे च जातेऽयमाविर्भूतो हरालये।

वन्दे गुहाग्रजं देवं सर्वदेवाग्रपूजितम्।।

एतन्नामाष्टकं दुर्गे नामभिः संयुतं परम्।

पुत्रस्य पश्य वेदे च तदा कोपं यथा कुरू।।

एतन्नामाष्टकं स्तोत्रं नानार्थ संयुतं शुभम्।

त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं स सुखी सर्वतोजयी।।

ते विध्ना पलायन्ते वैनतेयाद यथोरगः।

गणेश्वर प्रसादेन महाज्ञानी भवेद् ध्रुवम्।।

पुत्रार्थी लभते पुत्रं भार्यार्थी विपुलं स्त्रियम्।

महाजडो कवीन्द्रश्च विद्यावांश्च भवेद् ध्रुवम्।।