ॐ Shree Shiva Ashtakam श्री शिवाष्टक
आदि अनादि अनंत अखंड अभेद सुवेद बतावै,
अलखअगोचररुपमहेस कौ जोगि जती-मुनी ध्यान न पावै ।
आगम निगम पुरान सबै इतिहास सदा जिनके गुण गावैं,
बड़भागी नर नारि सोई जो साँब-सदाशिव कौ नित घ्यावैं ।
सृजन, सुपालन लय लीलाहित जो विधि हरिहररुप बनावै,
एकहि आप विचित्र अनेक सुबेस बनाइकैं लीला रचावै ।।
सुंदर सृष्टि सुपालन करिजग पुनिबल काल जु खाय पचावै,
बड़ भागी नर-नारि सोई सो सांँब सदाशिव कौ नित घ्यावै ।
अगुन अनीह अनमय अज अविकार सहज निज रूप धरावैं।
परम सुरम्य बसन आभूषन सजि मुनि मोहन रूप करावै ।
ललित ललाट बाल विधु विलसै रतन हार उर पै लहावैं,
बड़भागी नरनारि सोई जो साँब सदाशिव को नित घ्यावैं ।
अंग विभूति रमाय मसान की विषमय भुजंगनि कौं लपटावैं,
नर कपाल कर मुण्डमाल गल भालु चरम सब अंग उढ़ावें ।
वीर दिगम्बर, लोचन तीन भयानक देखि कैं सब थर्रावैं,
बड़भागी नरनारि सोई जो साँब सदाशिव कौं नित ध्यावें ।
सुनतहि दीन की दीन पुकार दयानिधि आप उबारन आवैं,
पहुँच तहाँ अविलंब सुदारुन मृत्यु को मर्म बिदारि भगावै ।
मुनि मृकंडु सुत की गाथा सुचि अजहुं विज्ञान गाइ सुनावंै,
बड़भागी नरनारि सोई जो साँब सदाशिव को नित घ्यावैं ।
चाउर चारि जो फल धतूर के बेल के पात औ पानी चढ़ावें ।
गाल बजाए के बोले जो हरहरमहादेव धुनि जो लगावें ।
तिनहि महाफल देयं सदाशिव सहजहि भक्ति सो पावैं ।
बड़भागी नरनारि सोई सो साँब सदा शिव कौं नित ध्यावैं ।
बिनसि दोषदुख दुरति दैन्य दारिद्रयं नित्यसुखशांतिमिलावैं ।
आसुतोष हर पाप ताप सब निरमल बुद्धि चित्त बकसावैं ।
असरन सरन काटि भवबंधन भव निज भवन भव्यबुलावैं,
बड़भागी नरनारि सोई जो साँब सदाशिव कौं नित ध्यावैं ।
औढ़रदानी, उदार अपार जु नैकु सी सेवा में ढुरि जावैं,
दमन अशांति समन संकट बिरद विचार जनहिं अपनावैं ।
ऐसे कृपालु कृपामय देव के क्यों न सरन अबहीं चलिएजावैं,
बड़भागी नरनारी सोई सो साँब सदाशिव कौं नित ध्यावैं ।