आरती युगल किशोर की कीजै, तन-मन-धन सब अर्पण कीजै।
रवि शशि कोटि बदन की शोभा, ताहि निरखि मेरा मन लोभा।
गौर श्याम मुख निरखरत रीझै, हरि स्वरुप नयन भरि पीजै।
कंचन थार कपूर की बाती, जगमग ज्योति जले दिन राती।
फूलन की सेज फूलन गलमाला, रतन सिंहासन बैठे नन्दलाला।
मोर मुकुट कर मुरली सोहै, नटवर वे श देख मन मोहै।
ओढ़े नील पीत पट सारीए कुंज बिहारी भव भय हारी।
गोपी जनों को प्रेम स्वरुपाए ध्यान धरे जो शुद्ध स्वरुपा।
श्री पुरुषोत्तम गिरिवर धारी, आरती करत सकल नर-नारी।
माता यशोदा आरती लाई, यह शोभा मेरे मन भाई।
नन्द नन्दन वृषभानु किशोरी, परमानन्द प्रभु अविचल जोरी।
जो कोई आरती प्रेम से गावे, बसे बैकुण्ठ परम पद पावे।
आरती युगल किशोर की कीजै, तन-मन-धन सब अर्पण कीजै।