क्षीर भवानी मंदिर

क्षीर भवानी मंदिर


क्षीर भवानी मंदिर

बीना बुदकी 

कश्मीर प्रदेश मे अनेक तीर्थ हैं। ऐसे ही तीर्थों में अनुपम है "क्षीर भवानी का मंदिर एवं जलकुण्ड" । क्षीर भवानी जलकुण्ड तीर्थ सिंधु नदी की उपत्यका में विराजमान है। हर महीने की अष्टमी को विशेष पूजा अर्चना होती है और ज्येष्ठ की शुक्लष्टमी पर महोत्सव मनाया जाता है। हर अष्टमी की पूरी रात भग्तगण जलकुण्ड में देवी दर्शन का इंतेज़ार करते हैं। क्षीर भवानी का दरबार तुलामुला गांव में है। यह दोदरहोम गांधरबल - सिंधु के तट पर बसा है।

धार्मिक पृष्ठभूमिः असंख्य विशालकाय चिनार वृक्षों के बीच में जगतजननी माता क्षीरभवानी का मंदिर एक प्रणवाकार कुण्ड के मध्य में है, ऐसा माना जाता है कि रावण ने अघोर तपस्या करके महामाया से वर मांगा कि हे देवी "आप लंका में निवास करें"। देवी ने प्रार्थना स्वीकार कर ली, लंकाद्वीप के उत्तर दिशा में एक कुण्ड में जो अनन्त नागों से आवृत्त था वहां जगदम्बा श्यामा तापसी रूप में प्रतिष्ठित हुई। इस घटना के पश्चात् रावण राक्षसों सहित इनकी पूजा राक्षसी परम्परा के अनुसार करने लगा, परंतु देवी राक्षसों के दुर्व्यवहार से क्रोधित तथा असंतुष्ट हुई, फिर त्रेतायुग में श्री रामचंद्र जी ने लंका पर आक्रमण किया तो रावण का निश्चित नाश जानकर भगवती श्यामा ने महाबली हनुमान को आदेश दिया कि वह उनको अपने कंधों पर बिठाकर सती देश (कश्मीर) ले चले। अतः हनुमान जी ने माता की आज्ञा शिरोधार्य करके तुरंत 360 नागों सहित देवी श्यामा को कंधों पर उठाकर कश्मीर की ओर प्रयाण किया। वहां उनका सर्वप्रथम पदापर्ण विष्णुपाद तीर्थ पर हुआ। वहां रम्य वनस्थली की तलहटी मध्यग्राम (मंजग्राम) में देवी ने उतर कर कुछ देर विश्राम किया। वहां से फिर देवसर गांव की उपत्यका ल्वकटीपुर (अनन्तनाग ) कश्मीर के सभी मुख्य स्थानों पर परिभ्रमण करके अंत में शादीपुर के पास हिमालय पर्वत की श्रृंखला की तलहटी में अतिरमणीय वृक्षों से आच्छादित नर्म तथा दलदली भूमि को अपना चिरस्थायी वास बनाया।

तीर्थस्थल का दर्शनीय वर्णनः क्षीर भवानी मंदिर में भाईचारे की अद्भुत मिसाल देखने को मिलती है। मुसलमान दूध व फल बेचने वाले भी मां की सेवा में लगे रहते हैं। मां का चढ़ावा है, दूध, फूल व हलवा इसके अलावा "व्यनॅ” एक विशेष प्रकार की फूल पत्तियों से पूजा अर्चना होती है जिसकी सुगंध से सारा वातावरण भीनी-भीनी खुशबू से महकता रहता है।

क्षीर भवानी के पवित्र कुण्ड का जल प्रायः रंग बदलता रहता है। हरा, गुलाबी, दुधिया रंग शुभ शगुन माना जाता हैं। विशेषकर देश में जब कभी किसी उपद्रव या विपत्ति की संभावना होती है तो अमृत कुण्ड के जल का वर्ण (रंग) काला पड़ जाता है। दूसरी विशेषता यह है कि प्रायः इस कुण्ड के जल के ऊपर स्वयं भू यंत्र बन जाते हैं जिसका दर्शन करके भक्त लोग कृतकृत्य हो जाते हैं। वैसे कुण्ड के बीच वाले स्थान को बिंदु कहते हैं, जिसका यौगिक क्रिया षट्चक्र भेदन में बड़ा महत्व है। क्षीर भवानी मंदिर के बीच में विराजमान है क्षीर भवानी की दिव्यमूर्ति तथा उसके संग विराजमान है भूतेश्वरनाथ । मंदिर के प्रांगण में ही शिव जी का घंटा मंदिर और हनुमान जी का मंदिर भी है।

स्वामी विवेकानंद ने यहां एकांतवास किया तथा मां के सम्मुख घोर तपस्या की थी। घोर तपस्या के फलस्वरूप मां के साक्षात्कार दर्शन प्राप्त हुए। प्रति वर्ष ज्येष्ठ अष्टमी के दिन आठ दिन तक मेला लगा रहता है। रात-दिन भक्तगण पूजा-पाठ में लगे रहते हैं। रात-दिन यह वार्षिक धार्मिक मेला बड़े ही जोर-शोर तथा सेवा भाव से किया जाता है। वार्षिक महोत्सव ज्येष्ठ की शुक्लपक्ष अष्टमी को जम्मू से क्षीर भवानी मंदिर के लिए बसें जाती हैं। इसके अतिरिक्त श्रीनगर के प्रत्येक मोहल्ले व बस अड्डे से क्षीर भवानी के लिए विशेष बस सेवा उपलब्ध कराई जाती है। इस भव्य मंदिर में देवी का प्रांगण ही सबसे बड़ा घर है। लोग चट्टाईयां बिछाकर प्रांगण में ही बैठते हैं वहीं खाना भी बनाते हैं। दिन-रात भक्ति में लीन रहते हैं। बारिश या ठंड होने पर धर्मार्थ ट्रस्ट की बहुत-सी धर्मशालाएं हैं, जहां पर ठहरने व बिस्तर आदि की पूर्ण व्यवस्था है।

बीना बुदकी, गाजियाबाद- 

 

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साभार:- बीना बुदकी एंव जून 1995 कोशुर समाचार