ज्येष्ठ अष्टमी
रजनी गंजू
ज्येष्ठ अष्टमी की महानता हमारे कश्मीर में काफी पुरातन काल से चली आ रही है! ये हर माह की शुक्ल पक्ष अष्टमी से कुछ भिन्न ही है। क्योंकि इसे मेले के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विवाह मुहूर्त भी होते हैं। ये पर्व अपने में अलग ही महत्ता रखता है।
वो दिन भी क्या दिन थे? जब हब विस्थापित न होकर अपनी जन्म भूमि कश्मीर में इस पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाते थे। कितने ही भजन कीर्तनों से सारी रात जागकर तुलमुल में 'मां राज्ञा भवानी' को भी जगा कर रखते थे और मां राज्ञा भी अपने बच्चों को देखकर कितना सजती थी; व प्रसन्न दिखती थी। चार बजे प्रातः मां के सुन्दर दर्शन नाग में चक्र के रूप में हुआ करते थे। जय जयकारों की झंकार से तुलमूला गूंज उठता था।
6 जून 1995 को फिर वही 'ज्येठ ऑठम' है पर हमारी झंकार क्या किसी क्षीर भवानी में न गूंजेगी, क्या वो दबाई गई है? हम उस जगत जननी अपनी मां को प्रतिपल याद करते हैं, क्या वो भी हमारी चिन्ता करती होगी?
कितने ही बीते हुए पर्व याद आते हैं, वही अलौकिक छटा आंखों के आगे-पीछे घूमती है। पर वास्तव में हम कहां बिखर कर रह गए। कई ज्येष्ठ अष्टमी मैंने भी 'माँ' के अनेक दरबारों में देखी हैं। अब एक-एक करके याद आ रही है।
'खनबरनी' दिवसर कुलगांव से जाया करते थे! जो एक छोटी सी पहाड़ी के दामन में बड़े-बड़े देवदारु के वृक्षों के बीच में सुन्दर सी जगह थी ( अब भी है)। मां ने अपना दरबार वहां भी सजाया और भक्तों ने वहां भी मा भवानी के चरण चिह्न खोज कर उनकी आराधना की। इस दिन वहां भी काफी बड़ा मेला लगता था। क्या मां हमें दर दर की ठोकरों से फिर बचाएगी? वही शांति, सुख व संतोष देगी जो कभी हमारा अपना था।
कुपवाड़ा से कुछ ही दूरी पर 'टिक्कर' गांव था। वहां भी ज्येष्ट का मेला धूमधाम से लगता था। श्रद्धालु जन कितनी ही दूरी से मां के सजे दरबार में आते थे। वो जगह भी सुन्दरता व एकांत से परिपूर्ण थी। तुलमूला की तरह वहां भी 'मां भवानी' कुंड (कश्मीरी नाग चश्मा) में शोभायमान थी। वहां स्व. नंदलाल (बब) का आश्रम भी है और 'ग्रट बब जी" का एकांत प्रिय स्थान भी।
हर घर में 'ज्येठ अठम' की तैयारिया कई दिन पहले से.. ही शुरू होती थी। तुलमुल काफी लोग कई दिन पहले ही जगह चुन कर रखते थे क्योंकि भीड़ काफी बढ़ती थी। कई लोग बसों में, कई अपनी मोटर कारों में कई डोगों में यात्रा करते थे। अब तो डोंगा (House boat) सुनकर नई पीढ़ी हंसेगी पर वो क्या जाने इसमें यात्रा का अलग ही आनंद हुआ करता था ? अपना घर जैसा माहौल हुआ करता था।
मैंने बचपन में कई जन्म दिन अपने स्वं दादा जी साथ तुलमूला में मनाए क्योंकि अष्टमी ही मेरा जन्म दिन है। और डोंगो में रहते हुए कई दिन हम 'मां' के दरबार में रहा करते थे। 'लुची' तथा 'कहवा' का आनन्द लेते थे, उन चीजों का स्वाद ही कुछ निराला हुआ करता था।
कितनी ही ऐसी यायें है जो अक्सर रुलाती है। अपने खोए हुए जीवन की ओर ले जाती है। लेकिन माता क्षीर भवानी का ममता भरा आंचल हमने थामे रखना है। वो हमारी शक्ति है, हमारा सहारा एवं विश्वास है। वही जगत जननी फिर से वैभव देगी, सुदिन दिखाएगी, सदबुद्धि देगी। जिसके हम इच्छुक है और जो हमें मिलना चाहिए।
आराम बाग पंचकुईयां रोड,
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साभार:- रजनी गंजू एंव जून 1995 कोशुर समाचार