हमारी यादों में रचा.बसा हमारा काश्मीर
राजकुमारी रैणा
वैसे तो भारत स्वयं में एक खूबसूरत देश है। भारत के किसी भी क्षेत्र या दिशा में जाये उसकी विविधता उसका सौन्दर्य आकर्षित करता है। इसके हर क्षेत्र की अपनी छवि है, लेकिन भारत के शीश कश्मीर की अपनी छवि कुछ अलग है, निराली है। वहां की वादियां, झीलों, बाग-बगीचों, बर्फीली पर्वतों और गुलरे-बुलबुलों का सौन्दर्य देखते ही बनता है। प्राकृतिक ऐसे ही अद्भुत सौन्दर्य को देखकर तो किसी शायर ने फारसी भाषा में कहा था-
गर फिरदोस बर रूए ज़मी अस्त
ही अस्तो हमीं अस्तो हर्मी अस्त
(यदि इस धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यही है यही है यही है।)
लेकिन हमारे पड़ोसी देश के न शासकों को हमारे कश्मीर की सुन्दरता, हमारा भोलापन, हमारे लोगों की सादगी । और भाईचारा नहीं रास नहीं आया। उन्होंने इसे वीरान नर्क बना दिया। वहां के लोग पहले पर्यटकों का स्वागत अपने सगे-संबंधियों जैसा करते थे, लेकिन आज हालत यह है कि पर्यटक तो क्या वहां रहने वाले लोग भी खुद डरे सहमे बदहाल जिन्दगी से परेशान इधर से उधर भाग रहे हैं । उसमें से बहुत सारे कश्मीर से भाग रहे हैं, शरणार्थी बने है।
कश्मीर के बर्फ की सुन्दर सफेद चादर अब उस घाटी का एक कफन सा लगता है। न जाने हमारे महकते कश्मीर को किस की नजर लग गई :
कभी चमन था आज एक सहरा है
देखते ही देखते क्या हुआ गुलिस्ता को
हमने कभी सोचा भी नहीं था कि हमें कभी अपने घर द्वार छोड़कर बेघर होना पड़ेगा। यूं तो हम आज भी जी रहे हैं खा रहे हैं, पी रहे हैं, लेकिन मन की शान्ति हमें सिर्फ कश्मीर में ही मिल सकती है। जब दीवाली पर गोलियों की जगह पटाखे छूटेंगे, जब घर नहीं दिये जलाए जायेंगे, तभी शान्ति मिलेगी हमें ।
और हम फिर से अपने सपनों को साकार कर सकेंगे, हम अपने कश्मीर को पुनः पाकर फिर से अपने घर-घर सजा सकेंगे। इसके लिए हम हर मुसीबत का सामना करने को तैयार हैं ताकि हमें फिर से आसू न बहाने पड़े । काश हमें अपना कश्मीर वापस मिले !
हर चेहरा यहां चांद है, हर जर्रा सितारा ।
यह वादिए कश्मीर है जन्नत का नज़ारा।
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साभार:- राजकुमारी रैणा एवं सितंबर 1997 नाद