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कार्तिक कृष्ण पक्ष पंचमी Karthik Krishna Paksha, Panchami

Namdev नामदेव

Namdev नामदेव

"अरे नामू, तेरी धोती में खून कैसे लग रहा है ? "

"यह तो माँ, मैंने कुल्हाड़ी से पैर को छीलकर देखा था। " माँ ने धोती उठाकर देखा, पैर में एक जगह की चमड़ी मांसरहित छील दी गई है। नामदेव तो ऐसे चल रहा था, मानो उसको कुछ हुआ ही नहीं।

माँ ने फिर पूछा– “नामू, तू बड़ा मूर्ख है। कोई अपने पैर पर भी कुल्हाड़ी चलाया करता है! पैर टूट जाए तो लँगड़ा होना पड़े। घाव पक जाए या सड़ जाए तो पैर कटवाने की नौबत आए।" "तब पेड़ को भी कुल्हाड़ी से चोट लगनी चाहिए। उस दिन तेरे कहने से मैं पलाश के पेड़ पर " कुल्हाड़ी चलाकर उसकी छाल उतार लाया था। मेरे मन में आया कि अपने पैर की छाल भी उतारकर देखूँ, मुझे कैसा लगता है। पलाश के पेड़ को कुछ हुआ होगा, यही जानने के लिए मैंने ऐसा किया है माँ!'

नामदेव की माँ को याद आया कि मैंने नामू को उस दिन काढ़े के लिए पलाश की छाल लाने भेजा था। माँ रो पड़ी। उसने कहा – “बेटा नामू, मालूम होता है, तू महान साधु होगा। पेड़ों में और दूसरे जीव-जंतुओं में भी मनुष्य के ही जैसा जीव है। अपनी चोट लगने पर दुःख होता है, वैसा ही उनको भी होता है।" बड़ा होने पर यही नामू प्रसिद्ध भक्त नामदेव हुए।

साभारः- अगस्त, 2004, अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या - 44