Politeness विनम्रता
प्रयाग में एक सभा का आयोजन किया गया था। कार्यक्रम की अध्यक्षता सर गंगानाथ झा कर रहे थे। जैसे ही श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी जी मंच पर आए तो सर गंगानाथ उनके चरण छूने को नीचे झुके। उधर द्विवेदी जी भी सर गंगानाथ के पैर छूने का प्रयत्न करने लगे। द्विवेदी जी बोले–“आप मेरे गुरु हैं, आपने मुझे संस्कृत लिखना सिखाया है तो मैं ही आपके चरण स्पर्श करूँगा।" सर गंगानाथ ने उत्तर दिया—‘‘नहीं द्विवेदी जी! मेरे गुरु तो आप हैं। आखिर मुझे हिंदी लिखना तो आपने ही सिखाया है।" विनम्रता ऐसी होती है ।
साभारः- सितंबर, 2012 % अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या - 20