मेरा पड़ोसी

मेरा पड़ोसी


मेरा पड़ोसी

संतोष पंडिता 'प्रेरणा  

मेरे अधजले मकान से

उठता धुआं देख

आज खुश हो रहा होगा

मेरा पड़ोसी,

नियत उसकी बिगड़ी थी

उसी दिन

जब मकान की नींव

रखते हुए उसने कहा था,

'एक दिन यह आशियाना

आएगा हमारे ही काम'।

हमने उसकी सच्ची बात को

टाला था कि

रशीद विश्वासघाती

नहीं हो सकता।

आज उसने अपना

नाम बदल दिया है

वह किसी गैरकानूनी संगठन का

स्वयं भू नेता

बन गया है।

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साभार:-  संतोष पंडिता 'प्रेरणा एवं 10 अप्रैल 1994 पाञ्चजन्य